Sunday 1 September 2013

एकाद्शी व्रत की कथा

l आज एकाद्शी व्रत कथा |

प्राचीन काल में एक चक्रवती राजा राज्य करता था. उसका नाम हरिशचन्द्र था. वह अत्यन्त वीर प्रतापी था और सत्यवादी था. उसने अपने एक वजन को पूरा करने के लिये अपनी स्त्री और पुत्र को बेच डाला था. और वह स्वयं भी एक चाण्डाल का सेवक बन गया था.
उसने उस चाण्डाल के यहां कफन देने का काम किया. परन्तु उसने इस दुष्कर कार्य में भी सत्य का साथ छोडा. जब इस प्रकार रहते हुए उसको बहुत वर्ष हो गये तो उसे अपने इस नीच कर्म पर बडा दु: हुआ, और वह इससे मुक्त होने का उपाय खोजने लगा. वह उस जगह सदैव इसी चिन्ता में लगा रहता था.
कि मै, क्या करूँ, एक समय जब कि वह चिन्ता कर रहा था, तो गौतम ऋषि आये, राजा ने इन्हें, देखकर प्रणाम किया और अपनी दु: की कथा सुनाने लगे. महर्षि राजा के दु: से पूर्ण वाक्यों को सुनकर अत्यन्त दु:खी हुये और राजा से बोले की हे राजन, भादों के कृ्ष्णपक्ष में एक एकाद्शी होती है. एकाद्शी का नाम अजा है. तुम उसी अजा नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत ��, तथा रात्रि को जागरन करो. इससे तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जायेगें. गौतम ऋषि राजा से इस प्रअर कहकर चले गये़.
अजा नाम की एकाद्शी आने पर राजा ने मुनि के कहे अनुसार विधि-पूर्वक व्रत था रात्रि जागरण किया. उसी व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए. उस समय स्वर्ग में नगाडे बजने लगे तथा पुष्पों की वर्षो होने लगी. उसने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र और महादेवजी को खडा पाया. उसने अपने मृ्तक पुत्र को जीवित करने तथा स्त्री को वस्त्र तथा आभूषणों से युक्त देखा.
व्रत के प्रभाव से उसको पुन: राज्य मिल गया. अन्त समय में वह अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को गया. यह सब अजा एकाद्शी के व्रत का प्रभाव था. जो मनुष्य इस व्रत को विधि-विधान पूर्वक करते है. तथा रात्रि में जागरण करते है. उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते है. और अन्त में स्वर्ग जाते है. इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही अश्वमेघ यज्ञ के समान फल मिलता है.

जय श्री कृष्णा

No comments:

Post a Comment