Friday, 13 September 2013

सत्संग सुनो

क्या तुम्हारे पास तुम्हारे खुद के जिन्दगी के लिए कुछ घंटे नहीं है ? कुछ घंटे दुनिया के कर्मो को अपने से दूर करो और अपने आत्म विकास के लिए कथा, सत्संग सुनो। तुम जिस काम के लिए परमात्मा को समय नहीं देते ये काम भी तुम्हें उसी ने दिया है। डरना उस दिन से जब तेरे सारे काम तुझसे वो वापस ले लेगा। और फिर तुम्हारे पास समय ही समय होगा। तुम याद रखो की जब तुम उसके लिए अपने काम को छोड़ते हो। जितनी देर तुम कथा, सत्संग या सत्कर्म कर रहे हो, उतनी देर वो तुम्हारे सारे काम को देखता है। उसकी जिम्मेवारी है की तुम्हारा कुछ बुरा हो। और तुम खुद सोंचो, किसी काम को तुम ज्यादा अच्छा कर सकते हो या परमात्मा ? अर्जुन ने श्री कृष्ण के हांथो में अपने रथ का डोर दे दिया और उस पर आश्रित हो गया। और परमात्मा कभी अपने आश्रितों पर आंच भी नहीं आने देते। आप जानते हो कौरव सौ थे और पांडव पाँच। और श्री कृष्ण की कृपा से पांडवो ने कौरवों को पराजित कर दिया। पर तुम्हें परमात्मा पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए। सबरी को पूर्ण विश्वास था की श्री राम आयेगे और श्री राम आये। और सिर्फ दर्शन नहीं दिया उसके जूठे बेर भी खाये। कर्मा की खिचड़ी भी खाई, क्यों की इन सभी को परमात्मा पर पूर्ण विश्वास था। उसी तरह तुम्हें भी परमात्मा पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए और विश्वास होगा सिर्फ कथा, सत्संग से हीं।

पर कथा, सत्संग सुनने का नियम भी होता है। जब तुम कथा, सत्संग से घर जाओ तो तुम्हारे मन में निरंतर उसका चिंतन होना चाहिए। और अगर तुम्हें अपने घर में या अपने मित्रों में कोई अच्छा श्रोता मिल जाये तो उसे भी जो तुमने सुना है उसको उसे बताओ। इससे ये फायदा है की उस मित्र का तो कल्याण होगा ही साथ तुम्हारा भी निरंतर कथा, सत्संग का चिंतन होता रहेगा। और जब तुम्हारा चिंतन कथा, सत्संग में रहेगा तो तुम्हारा दर्शन, श्रवन, मनन, सभी कृष्णमय हो जायेगा। और जब ऐसा हो जायेगा तो श्री कृष्ण को भी तेरी याद आएगी। वो भी तुझ से मिलने के लिए दौड़ा चला आएगा।

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