Thursday 29 May 2014

अखंड सौभाग्य के लिए करें वट सावित्री अमावस्या व्रत पति को लंबी उम्र देता हैं वट सावित्री अमावस्या का व्रत

ऐसी मान्यता है कि जेष्ठ अमावस्या के दिन वट वृक्ष की परिक्रमा करने पर ब्रह्मा,

 विष्णु और महेश सुहागिनों को सदा सौभाग्यवती रहने का वरदान देते हैं। गांवों-

शहरों में हर कहीं जहां वट वृक्ष हैं, वहां सुहागिनों का समूह परंपरागत विश्वास से

पूजा करता दिखाई देगा।

अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना के लिए वट सावित्री अमावस्या पर सुहागिनें

 वट सावित्री पूजा करेंगी। कई स्थानों पर वट वृक्ष के तले सुहागिनों का तांता नजर

 आएगा। 
कैसे करें वट सावित्री व्रत...
वट सावित्री व्रत विधि



भारतीय धर्म में वट सावित्री अमावस्या स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है। मूलतः यह व्रत-पूजन सौभाग्यवती स्त्रियों का है। फिर भी सभी प्रकार की स्त्रियां (कुमारी, विवाहिता, विधवा, कुपुत्रा, सुपुत्रा आदि) इसे करती हैं।

इस व्रत को करने का विधान ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी से पूर्णिमा तथा अमावस्या तक है। आजकल अमावस्या को ही इस व्रत का नियोजन होता है। इस दिन वट (बड़, बरगद) का पूजन होता है। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं।

पति को लंबी उम्र देता हैं वट सावित्री अमावस्या का व्रत

कहा जाता है कि वटवृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति व्रत की प्रभाव से मृत पड़े सत्यवान को पुनः जीवित किया था। तभी से इस व्रत को वट सावित्री नाम से ही जाना जाता है। इसमें वटवृक्ष की श्रद्धा भक्ति के साथ पूजा की जाती है।

महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य एवं कल्याण के लिए यह व्रत करती हैं। सौभाग्यवती महिलाएं श्रद्धा के साथ ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों तक उपवास रखती हैं।


पति को लंबी उम्र देता हैं वट सावित्री अमावस्या का व्रत




ज्येष्ठ मास के व्रतों में वट अमावस्या का व्रत बहुत प्रभावी माना जाता है, जिसमें सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु एवं सभी प्रकार की सुख-समृद्धियों की कामना करती हैं।

इस दिन स्त्रियां व्रत रखकर वट वृक्ष के पास पहुंचकर धूप-दीप नैवेद्य से पूजा करती हैं तथा रोली और अक्षत चढ़ाकर वट वृक्ष पर कलावा बांधती हैं। साथ ही हाथ जोड़कर वृक्ष की परिक्रमा लेती हैं। जिससे पति के जीवन में आने वाली अदृश्य बाधाएं दूर होती हैं तथा सुख-समृद्धि के साथ लंबी उम्र प्राप्त होती है।

अखंड सौभाग्य के लिए करें वट सावित्री अमावस्या व्रत
सौभाग्यवती महिलाओं की मनोकामना का पर्व

सुहागिन महिलाओं द्वारा हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। कहा जाता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु व डालियों व पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है।

इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं, सती सावित्री की कथा सुनने व वाचन करने से सौभाग्यवति महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है।


क्रोध करने के सात अनर्थ

भगवान गौतम बुद्ध ने क्रोध करने से सात अनर्थ बताए हैं। उनके अनुसार जो स्त्री या पुरुष क्रोध करता है, उसके शत्रु को इन सात बातों की प्रसन्नता होती है :-

(1) मनुष्य चाहता है कि उसका शत्रु कुरूप हो जाए क्योंकि कोई भी यह पसंद नहीं करता है कि उसका शत्रु स्वरूपवान हो, सुंदर हो। जब उसे क्रोध आता है, तो भले ही उसने मल-मलकर स्नान किया हो, सुगंध लगाई हो, बाल और दाढ़ी ठीक ढंग से बनाई हो, उसके कपड़े स्वच्छ हों, फिर भी वह कुरूप लगता है क्योंकि उसकी आंखों में क्रोध भरा हुआ है। इससे उसके शत्रु को प्रसन्नता होती है।

(2) मनुष्य चाहता है कि उसका शत्रु पीड़ा पाए। क्योंकि कोई आदमी यह पसंद नहीं करता कि उसका शत्रु आराम से रहे। जब उसे क्रोध आता है तो भले ही वह बढ़िया बिस्तर पर पड़ा हो, बढ़िया कंबल उसके पास हो, मृगचर्म ओढ़े हो, सिर और पैर के नीचे बढ़िया तकिए लगे हों, फिर भी वह पीड़ा का अनुभव करता है क्योंकि उसकी आंखों में क्रोध भरा हुआ है। इससे उसके शत्रु को प्रसन्नता होती है।

(3) मनुष्य चाहता है कि उसका शत्रु संपन्न न रहे। क्योंकि अपने शत्रु की संपन्नता किसी को अच्छी नहीं लगती। मनुष्य जब क्रोध का शिकार होता है, तब वह बुरे को अच्छा और अच्छे को बुरा समझता है। इस तरह करते रहने से उसे हानि और कष्ट भोगना पड़ता है। उसकी संपन्नता जाती रहती है। इससे उसके शत्रु को प्रसन्नता होती है।

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(4) मनुष्य चाहता है कि उसका शत्रु धनवान न हो। क्योंकि कोई यह पसंद नहीं करता कि उसका शत्रु पैसेवाला हो। जब उसे क्रोध आता है तो भले ही उसने अपने श्रम से संपत्ति जुटाई हो, अपनी भुजाओं से, अपने श्रम के बल पर पसीने से, ईमानदारी से पैसा इकट्ठा किया हो, वह गलत काम करने लगता है, जिससे उसे जुर्माना आदि करना पड़ता है। उसकी संपत्ति नष्ट हो जाती है। इससे उसके शत्रु को प्रसन्नता होती है।

(5) मनुष्य चाहता है कि उसके शत्रु की नामवरी न हो। क्योंकि कोई आदमी यह पसंद नहीं करता कि उसके शत्रु की ख्याति हो। जब उसे क्रोध आता है तो पहले उसने भले ही अपने अच्छे कामों से नामवरी प्राप्त की हो, अब लोग कहने लगते हैं कि यह तो बड़ा क्रोधी है। उसकी नामवरी मिट जाती है। इससे उसके शत्रु को प्रसन्नता होती है।

(6) मनुष्य चाहता है कि उसका शत्रु मित्रहीन रहे, उसका कोई मित्र न हो। क्योंकि कोई मनुष्य नहीं चाहता कि उसके शत्रु का कोई मित्र हो। जब उसे क्रोध आता है तो उसके मित्र, उसके साथी, उसके सगे-संबंधी उससे दूर रहने लगते हैं क्योंकि वह क्रोध का शिकार होता है। इससे उसके शत्रु को प्रसन्नता होती है।

(7) मनुष्य चाहता है कि मरने पर उसके शत्रु को सुगति न मिले उल्टे नरक में बुरा स्थान मिले। क्योंकि कोई शत्रु नहीं चाहता कि उसके शत्रु को अच्छा स्थान मिले। जब मनुष्य को क्रोध आता है तो वह मन, वचन, कर्म से तरह-तरह के गलत काम करता है। इससे मरने पर वह नरक में जाता है। इससे उसके शत्रु को प्रसन्नता होती है।

क्रोधी आदमी किसी बात का ठीक अर्थ नहीं समझता। वह अंधकार में रहता है। वह अपना होश खो बैठता है। वह मुंह से कुछ भी बक देता है। उसे किसी बात की शर्म नहीं रहती। वह किसी की भी हत्या कर बैठता है, फिर वह साधारण आदमी हो या साधु हो, माता-पिता हों या और कोई। वह आत्महत्या तक कर बैठता है।

क्रोध से मनुष्य का सर्वनाश होता है। जो लोग क्रोध का त्याग कर देते हैं, काम, क्रोध, ईर्ष्या से अपने को मुक्त कर लेते हैं, वे निर्वाण पाते हैं।
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क्रोध करने से मनुष्य का चेहरा कुरूप हो जाता है,



क्रोध करने से मनुष्य का चेहरा कुरूप हो जाता है, उसे पीड़ा होती है, वह गलत

 काम करता है, उसकी संपत्ति नष्ट हो जाती है, उसकी बदनामी होती है, उसके 

मित्र और सगे-संबंधी उसे छोड़ देते हैं और उस पर तरह-तरह के संकट आते हैं।

भगवान गौतम बुद्ध के अनुसार क्रोध और क्षोभ उत्पन्न होने पर इससे पांच प्रकार से छुटकारा पाया जा सकता है :-

1. मैत्री से : जिस आदमी के प्रति क्रोध या क्षोभ हो, उसके प्रति मैत्री की भावना करो।

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2. करुणा से : जिस आदमी के प्रति क्रोध या क्षोभ हो, उसके प्रति करुणा की भावना करो।

3. मुदिता : जिस आदमी के प्रति क्रोध या क्षोभ हो, उसके प्रति मुदिता की भावना करो।

4. उपेक्षा से : जिस आदमी के प्रति क्रोध या क्षोभ हो, उसके प्रति उपेक्षा की भावना करो।

5. कर्मों के स्वामित्व की भावना से : जिस आदमी के प्रति क्रोध या क्षोभ हो, उसके बारे में ऐसा सोचो कि वह जो कर्म करता है, उसका फल अच्छा हो या बुरा, उसी को भोगना पड़ेगा।
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पुरानी कथा है

पुरानी कथा है। महान आचार्य द्रोणाचार्य के पास अनेक राजकुमार विद्याध्ययन के लिए आते थे। इनमें महाराज युधिष्ठिर सबमें बड़े थे। उनकी पहली पुस्तक का पहला पाठ था कि 'मनुष्य को क्रोध त्याग देना चाहिए, क्योंकि क्रोध के समान कोई दुष्ट नहीं जो कि स्वयं अपनी माता को भक्षण कर जाता है।' 

युधिष्ठिर का मन इस वाक्य पर अटक गया। चाहे प्राण चले जाएं, पर क्रोध न करूंगा और जब तक क्रोध को न जीत लूंगा तब तक आगे पढ़ाई करना मेरे बूते के बाहर है और फिर पढ़ाई से मुख मोड़ लिया।

कुछ समय बीतने पर परीक्षक ने उन सभी राजकुमारों की परीक्षा ली। बारी-बारी से प्रायः सभी ने एक-एक कर अपने पाठ सुना दिए। किंतु युधिष्ठिर ने कहा कि मुझे तो पहिला ही पाठ याद है और कोई पाठ याद नहीं है। 
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परीक्षक को तुरंत क्रोध आया और वे युधिष्ठिर को सटासट बेतें मारने लगे। जब अंततः परीक्षक बेतें मारते-मारते थक गए तो भी युधिष्ठिर के चेहरे पर क्रोध की रंच मात्र भी झलक नहीं पड़ी। तब परीक्षक ने द्रोणाचार्य को बुलाकर कहा कि 'युद्धिष्ठिर सभी राजकुमारों में बड़े है, परंतु इन्होंने सबसे कम वाक्य लिखे हैं।' 

इस पर द्रोणाचार्य ने कहा कि हम भी भूल पर हैं कि इन्होंने पहले पाठ को अपने आचरण में उतार लिया है कि इतनी अधिक पिटाई होते हुए भी इनके चेहरे पर लेशमात्र भी क्रोध का नामोनिशान नहीं है। 

परीक्षक तो जैसे लज्जा से गड़ गए वे कुछ बोल न पाए और युधिष्ठिर से क्षमा मांग बैठे।

आपका सौभाग्य जगाएगी पवित्र तुलसी बुरी नजर से बचाए तुलसी का ‍तांत्रिक उपाय

तुलसी के बारे में हिंदू मान्यताओं में बताया गया है कि हर घर के बाहर तुलसी का

 पौधा होना अनिवार्य है। इतना ही नहीं, बल्कि जो व्यक्ति प्रतिदिन तुलसी का 

सेवन करता है, उसका शरीर अनेक चंद्रायण व्रतों को फल के समान पवित्रता प्राप्त 

कर लेता है। 


जल में तुलसीदल (पत्ते) डालकर स्नान करना तीर्थों में स्नान कर पवित्र होने जैसा

 है और जो व्यक्ति ऐसा करता है वह सभी यज्ञों में बैठने का अधिकारी होता है। 

इतना ही नहीं यह वास्तु दोष भी दूर करने में सक्षम है। 

प्रतिदिन तुलसी का पूजन करना और पौधे में जल अर्पित करना हमारी प्राचीन 

परंपरा है। जिस घर में प्रतिदिन तुलसी की पूजा होती है, वहां सुख-समृद्धि, 

सौभाग्य 

बना रहता है। धन की कभी कोई कमी महसूस नहीं होती। अत: हमें विशेष तौर 

पर 


प्रतिदिन तुलसी का पूजन अवश्य करना चाहिए। 

करेला

करेला -
करेला के गुणों से सब परिचित हैं I
मधुमेह के रोगी विशेषतः इसके रस और सब्जी का सेवन करते हैं | समस्त भारत में इसकी खेती की जाती है | इसके पुष्प चमकीले पीले रंग के होते हैं | इसके फल -२५ सेमी लम्बे, सेमी व्यास के,हरे रंग के,बीच में मोटे,सिरों पर नुकीले,कच्ची अवस्था में हरे तथा पक्वावस्था में पीले वर्ण के होते हैं | इसके बीज -१३ मिमी लम्बे,चपटे तथा दोनों पृष्ठों पर खुरदुरे होते हैं जो पकने पर लाल हो जाते हैं | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जून से अक्टूबर तक होता है | आज हम आपको करेले के कुछ औषधीय प्रयोगों से अवगत कराएंगे -
- करेले के ताजे फलों अथवा पत्तों को कूटकर रस निकालकर गुनगुना करके - बूँद कान में डालने से कान-दर्द लाभ होता है |
- करेले के रस में सुहागा की खील मिलाकर लगाने से मुँह के छाले मिटते हैं |
-सूखे करेले को सिरके में पीसकर गर्म करके लेप करने से कंठ की सूजन मिटती है
- १०-१२ मिली करेला पत्र स्वरस पिलाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं |
- करेला के फलों को छाया शुष्क कर महीन चूर्ण बनाकर रखें | - ग्राम की मात्रा में जल या शहद के साथ सेवन करना चाहिए | मधुमेह में यह उत्तम कार्य करता है | यह अग्नाशय को उत्तेजित कर इन्सुलिन के स्राव को बढ़ाता है |
- १०-१५ मिली करेला फल स्वरस या पत्र स्वरस में राई और नमक बुरक कर पिलाने से गठिया में लाभ होता है |
- करेला पत्र स्वरस को दाद पर लगाने से लाभ होता है | इसे पैरों के तलवों पर लेप करने से दाह का शमन होता है|
- करेले के १०-१५ मिली रस में जीरे का चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार पिलाने से शीत-ज्वर में लाभ होता है |

                        

श्री राधा नाम का रंग रंग, श्री राधा नाम का रंग रंग

मुझे चढ़ गया राधा रंग रंग, मुझे चढ़ गया राधा रंग।
श्री राधा नाम का रंग रंग, श्री राधा नाम का रंग रंग॥
ऐसी कृपा बरसाई है, मुझे नाम की मस्ती छाई है।
मैं हो गया राधा रानी का, वृन्दावन की महारानी का।
अब करो कोई तंग, मुझे चढ़ गया राधा रंग॥
श्री राधा रानी के चरणों में जो तेरा प्यार हो जाता,
तो इस भाव सिंदु से तेरा ये बेडा पार हो जाता।
पकड़ लेता चरण गर तू श्री राधा रानी के,
तो पागल, तुझको मेरे श्याम का दीदार हो जाता॥
मैं छोड़ चुका दुनिया सारी, अब नहीं किसी से है यारी।
कोई कहता है दीवाना हूँ, पागल हूँ मैं मस्ताना हूँ।
मैं हो गया मस्त मलंग, मुझे चढ़ गया राधा रंग॥
जय राधे राधे, राधे राधे।
वृन्दावन में, राधे राधे।
यमुना तट पे, राधे राधे।
वंसी वट पे, राधे राधे।
कुञ्ज गली में, राधे राधे।
बांके बिहारी, राधे राधे।
हमारी प्यारी, राधे राधे।
सब की प्यारी, राधे राधे।
प्यारी प्यारी, राधे राधे।
जय राधे राधे, राधे राधे॥
                          
⛳⛳󾀽󾆫󾀽󾆫󾀽󾆫󾀽⛳⛳
राधा सखी की और से सादर नमन, 
सखाओं और सखियों..... किशोरी जू की कृपा पाने के लिए. 
यह पेज लाइक करो ,और किशोरी जू की खूब कृपा पाओ !!󾟛राधा सखी⛳
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मुझे चढ़ गया राधा रंग रंग, मुझे चढ़ गया राधा रंग।
श्री राधा नाम का रंग रंग, श्री राधा नाम का रंग रंग॥

ऐसी कृपा बरसाई है, मुझे नाम की मस्ती छाई है।
मैं हो गया राधा रानी का, वृन्दावन की महारानी का।
अब करो न कोई तंग, मुझे चढ़ गया राधा रंग॥

श्री राधा रानी के चरणों में जो तेरा प्यार हो जाता,
तो इस भाव सिंदु से तेरा ये बेडा पार हो जाता।
पकड़ लेता चरण गर तू श्री राधा रानी के,
तो पागल, तुझको मेरे श्याम का दीदार हो जाता॥

मैं छोड़ चुका दुनिया सारी, अब नहीं किसी से है यारी।
कोई कहता है दीवाना हूँ, पागल हूँ मैं मस्ताना हूँ।
मैं हो गया मस्त मलंग, मुझे चढ़ गया राधा रंग॥

जय राधे राधे, राधे राधे।
वृन्दावन में, राधे राधे।
यमुना तट पे, राधे राधे।
वंसी वट पे, राधे राधे।
कुञ्ज गली में, राधे राधे।
बांके बिहारी, राधे राधे।
हमारी प्यारी, राधे राधे।
सब की प्यारी, राधे राधे।
प्यारी प्यारी, राधे राधे।
जय राधे राधे, राधे राधे॥
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