महात्माओं में अद्भुत प्रभाव होता है । उनके दर्शन, भाषण, स्पर्श, वार्तालाप से पापों का नाश और दुर्गुण-दुराचारों का अभाव होकर सद्गुण-सदाचार आ जाते है । अज्ञान का नाश होकर ह्रदय में ज्ञान आ जाता है, जिससे हमे सहज ही भगवतप्राप्ति हो जाती है । यह उन महापुरुषों का प्रभाव है, जो भगवान् के भेजे हुए अधिकारी पुरुष है अथवा जो महापुरुष परमात्मा को प्राप्त हो चुके है । ऐसे महात्मा परमात्मा ही बन जाते है । इसलिए परमात्मा के गुण-प्रभाव उनके गुण-प्रभाव है, यह समझना ही महात्मा को तत्व से समझना है ।
वास्तव में महात्मा का आत्मा परमात्मा से अलग नहीं है, पर हम मानते नही, उसे परमात्मा से भिन्न समझते है, इसलिए हम परमात्मा की प्राप्ति से वंचित रहते है । यह समझना ही अन्त:करण की शुद्धि होने पर ही होता है ।
भक्तिमार्ग में भगवान् से भिन्न रहने पर भी भक्तों की स्थिति विलक्षण होती है । जैसे जीवन्मुक्त ज्ञानी के दर्शन, भाषण, स्पर्श से मनुष्य पवित्र हो जाता है, वैसे ही भगवत्प्राप्त भगवतभक्त के दर्शन, भाषण, स्पर्श से भी हो जाता है । महापुरुषों का रहस्य वास्तव में महापुरुष बनने पर ही समझ में आता है । उनके उददेश्य सर्वथा अलौकिक और अदभुत होता है । उनका अपना तो कोई कर्म रहता ही नहीं । संसार में उनका जो जीवन है यानी शरीर की स्थिति है, तथा जो उनकी चेष्टा है, वह संसार के हित के लिए ही है । जैसे भगवान् का अवतार संसार के उद्धार के लिए होता है, वैसे ही महात्मा पुरुषों का जीवन भी संसार क उद्धार के लिए ही है ।
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