राधा कृष्ण का अनमोल प्रेम •• 16 साल की उम्र के बाद कृष्ण
जी पूरे जीवन राधा जी से कभी नहीं
मिले। लेकिन सात साल की उम्र से लेकर 16 साल तक के उन नौ सालों में, जो उन्होंने राधा जी के
साथ गुजारे, राधा जी उनका एक हिस्सा बन गईं ।वह जीवन में बहुत सारे लोगों से मिले, बहुत
सारे काम किए। उन्होंने कई विवाह भी किए , लेकिन राधा जी उनके जीवन में हमेशा बनी रहीं।
राधा जी के शब्दों में -: "मैं उनमें रहती हूं और वह मुझमें। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि वह
कहां हैं और किसके साथ रहते हैं। वह हमेशामेरे साथ हैं कहीं और वह रह ही नहीं सकते।" कृष्ण जी जब
16 साल के हुए, जिंदगी ने उनके रास्ते बदल दिए।कृष्ण जी को अपनी बांसुरी पर बड़ा गर्व था
क्योंकि इसी बाँसुरी ने ही तो कृष्ण जी को राधा जी से मिलवाया था। उनकी बांसुरी थी ही इतनी
मंत्रमुग्ध कर देने वाली कि जब वह बांसुरी बजाते थे तो गोपियाँ मंत्रमुग्ध हो जाती थी और
इसीलिये#कृष्ण जी को सारी गोपियाँ प्यार करती थीं। लेकिन 16 साल की उम्र के बाद कृष्ण जी
कभी #राधा जी से नही मिले लेकिन मानसिक रूप से उनसे हमेशा जुड़े रहे.... इसीलिए उन्होंने जाने
से पहले न सिर्फ अपनी बांसुरी राधे को दे दी, बल्कि उसके बाद जीवन में फिर कभी उन्होंने बांसुरी
नहीं बजाई।लेकिन आज भी हम राधा जी को कृष्ण जी के साथ याद करते हैं तो पहले राधा जी का
ही नाम लेते हैं..... राधे - श्याम , राधे - कृष्णा
मिले। लेकिन सात साल की उम्र से लेकर 16 साल तक के उन नौ सालों में, जो उन्होंने राधा जी के
साथ गुजारे, राधा जी उनका एक हिस्सा बन गईं ।वह जीवन में बहुत सारे लोगों से मिले, बहुत
सारे काम किए। उन्होंने कई विवाह भी किए , लेकिन राधा जी उनके जीवन में हमेशा बनी रहीं।
राधा जी के शब्दों में -: "मैं उनमें रहती हूं और वह मुझमें। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि वह
कहां हैं और किसके साथ रहते हैं। वह हमेशामेरे साथ हैं कहीं और वह रह ही नहीं सकते।" कृष्ण जी जब
16 साल के हुए, जिंदगी ने उनके रास्ते बदल दिए।कृष्ण जी को अपनी बांसुरी पर बड़ा गर्व था
क्योंकि इसी बाँसुरी ने ही तो कृष्ण जी को राधा जी से मिलवाया था। उनकी बांसुरी थी ही इतनी
मंत्रमुग्ध कर देने वाली कि जब वह बांसुरी बजाते थे तो गोपियाँ मंत्रमुग्ध हो जाती थी और
इसीलिये#कृष्ण जी को सारी गोपियाँ प्यार करती थीं। लेकिन 16 साल की उम्र के बाद कृष्ण जी
कभी #राधा जी से नही मिले लेकिन मानसिक रूप से उनसे हमेशा जुड़े रहे.... इसीलिए उन्होंने जाने
से पहले न सिर्फ अपनी बांसुरी राधे को दे दी, बल्कि उसके बाद जीवन में फिर कभी उन्होंने बांसुरी
नहीं बजाई।लेकिन आज भी हम राधा जी को कृष्ण जी के साथ याद करते हैं तो पहले राधा जी का
ही नाम लेते हैं..... राधे - श्याम , राधे - कृष्णा
No comments:
Post a Comment