Tuesday 1 October 2013

न्दर भाग्यो आंतरै, अब लग बिरखाहीन

दीधा जो देवता,लुठा पण ही लीन !
इन्दर भाग्यो आंतरै, अब लग बिरखाहीन !

देवताओं ने जो इसे नहीं दिया, उसे यहाँ के वीरपुत्रों ने अपने भुज-बल से बलपूर्वक ले लिया |

इससे भयभीत होकर देवताओं का राजा इंद्र कहीं दूर भाग गया था |

यही कारण है कि इस (राजस्थान) धरती पर आज तक वर्षा क्षीण होती है |

सुरसत आवै इण धरा , हंस भलां असवार |
इक हाथ वीणा बाजणी, बीजै हथ तरवार ||

हे सरस्वती !
आप इस धरा पर अपने वाहन हंस पर आरूढ़ होकर आयें |
आपके एक हाथ में भले ही वीणा हो ,परन्तु दुसरे हाथ में तलवार अवश्य होनी चाहिए |
(
क्योंकि इस वीर भूमि में आपका अवतरण बिना तलवार के शोभा नहीं देगा) |

नम-नम नाऊँ माथ नित, सुरसत दुरगा माय |
दोन्यू देव्यां मेल इत, सोनो गंध सुहाय||

मैं नित माँ शारदा और दुर्गा के बारम्बार मस्तक नवाता हूँ |
यहाँ इन दोनों ही देवियों में परस्पर अटूट प्रेम रहा है,
जोमानों सोने में सुगंध के समान है | (यहाँ विद्या और वीरता का मणि -कांचन संयोग रहा है)

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