Sunday, 17 November 2013

धन की तीन गति होती हैं - 1.दान 2.भोग 3.नाश

आज जिसके पास धन है कलयुग के मनुष्य उस धनवान को ही सम्पन समझते है लेकिन वो यह नहीं समझते की राज्य,धन-दौलत तो दुर्योधन के पास भी था पर वह धर्मात्मा नहीं था और अंत में उसका सर्वनाश हो गया। क्योंकि ये धन हमारी मति को फिरा देता है और हमें धर्म से अधर्म की ओर ले जाता है इसलिए धन के साथ धर्म का होना अतिआवश्यक है और धर्म करने के लिए हमें उस धन का कुछ हिस्सा भगवान के शुभ कार्यों में दान करना चाहिए।
धन की तीन गति होती हैं - 1.दान 2.भोग 3.नाश।  1. दान   धन की सबसे उत्तम गति है।  2. भोग   धन की मध्यम गति है जिससे हम सुख के संसाधन एकत्रित करते हैं। धन की तीसरी गति   3. नाश    के स्वरूप में होती है जो हमें मात्र और मात्र दुःख देकर जाती है। जिन्होंने पहले दान दिया है वो आज धनी हैं और जो दान देंगे वो भविष्य में धनी होंगे व दिया हुआ अहंकार से मुक्त दान कभी भी निष्फल नहीं जाता। 
"क्या भरोसा है इस जिंदगी का,साथ देती नहीं है किसी का।
दुनिया की है हकीकत है पुरानी,चलते रुकना है इसकी रवानी।
फर्ज पूरा करो जिंदगी का,साथ देती नहीं ये किसी का।
इस जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है इसलिए भगवान ने हमें जिन धर्म के कार्यों लिए मानव जीवन दिया है हमें उन्ही धर्म के कार्यों को करना चाहिए और अपने तन,मन,धन का सदुपयोग करना चाहिए जिससे जब हम अपने श्री कृष्ण से मिलें तो वो कहे की मेरे प्यारे तुमने मानव जीवन का सदुपयोग किया है दुरूपयोग नहीं और हमे गले से लगा ले।
॥ जय जय श्री राधे ॥ ॥ जय जय श्री राधे ॥ ॥ जय जय श्री राधे ॥

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