Saturday, 9 November 2013

आपका कोई और शत्रु नहीं है। अगर कोई आपका शत्रु है तो, वो है आप खुद

 आपका कोई और शत्रु नहीं है। अगर कोई आपका शत्रु है तो, वो है आप खुद। आप खुद अपने आप के शत्रु हैं। अब बोलोगे कैसे ? वो इसलिए क्यों की कुछ भी बुरा करते वक्त आपको पता होता है, की ये गलत है। फिर भी आप वही करते हो, अपने मन के अधीन हो कर। नशा करने वाला जानता है की ये मुझे नुकसान देगा। किसी भी सिगरेट, शराब या अन्य नशीली वस्तु के पैकेट पर साफ - साफ लिखा होता है की "तम्बाकू खाना स्वास्थ के लिए हानिकारक है" फिर भी तुमसे वो नहीं छूटता। कोई अपराध करते वक्त भी हमें पता होता है की इसका परिणाम क्या होगा, फिर भी हम वही करते हैं। तो बताओ तुम खुद के शत्रु हो या नहीं ?

श्री कृष्ण के समय एक कंस था, अब तो हर घर में कई कंस हैं। अब बताओ क्या हर घर के कंस को मारने, हर घर में श्री कृष्ण आयेंगे? आज हर घर में श्री कृष्ण को आने की जरुरत नहीं है। आज हर घर के कंसो को ठीक करने के लिए श्री कृष्ण की कथा हीं काफी है। इसलिए श्रीमद भागवत कथा का पुरे मन से श्रवण किया करो। शुरू के दो दिन न भी मन लगे तो, मन से जबरदस्ती कर के दो दिन कथा में बैठो । और तीसरे दिन से स्वतः तुम्हारा मन लगने लगेगा। क्यों की जब तक हमारे ऊपर पाप का प्रभाव होता है, तो हमें कथा,सत्संग में मन नहीं लगता। पर जब हम कुछ दिन जबरदस्ती कथा, सत्संग में बैठते हैं तो, हमारे ऊपर जो दुनियां के पापो का प्रभाव होता है वो ख़त्म हो जाता है, और हमें स्वतः मन लगने लगता है। आप बताओ जब पहली बार तुम स्कुल गए थे तो क्या मन लगा था ? नहीं लगा था, पर तुम जानते थे की पढना मेरे लिए जरुरी है। उसी तरह ये कथा,सत्संग भी तुम्हारे आत्म विकास के लिए बहुत जरुरी है। इसलिए जब भी समय मिले अधिक से अधिक बार - बार कथा, सत्संग सुना करो। यही तुम्हारे मानव जीवन का मुख्य उदेश्य है।

॥ जय जय श्री राधे ॥ ॥ जय जय श्री राधे ॥ ॥ जय जय श्री राधे ॥

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