आज हम अपने धर्म पर अपने
भगवान पर विश्वास नहीं करते हैं, हमें शंका होती है कि हमारी
इच्छा पूरी होगी या नहीं और उसी का परिणाम है कि हमें वो नहीं मिलता जो हम चाहते हैं।
तुम्हें परमात्मा पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए और जब तुम्हारा विश्वास पूर्ण होगा तो तुम्हें
निराश नहीं होना पड़ेगा। उसी के उदाहरण स्वरुप एक सुन्दर प्रसंग है।
"एक आदमी था जो पढ़ा लिखा था और खुद को बहुत मॉडर्न मानता था। अपने नौकरो को भी
डाँटता था तो अंग्रेजी में, अपने कुत्तों से भी बात करता तो अंग्रेजी में। एक बार कि बात उसके
बेटे कि तबियत ख़राब हो गयी तो उसने तुरंत डॉक्टर को दिखाया तो कुछ फायदा नहीं हुआ।
और भी कई डॉक्टरों को दिखाया तो कोई फायदा नहीं हुआ, फिर उसने हकिमों और वैधों को भी
दिखाया तो भी कोई फायदा नहीं हुआ। अब तो वो आदमी बहुत परेशान हो गया।
एक दिन उसके घर एक बाबा आये और बोले कि मैं उसे ठीक कर सकता हूँ। उसने कहा कि बड़े
- बड़े डॉक्टर नहीं कर सके तुम क्या करोगे ? पर बेटे के लिए ये भी कर लूंगा। बताओ क्या
करना है ? बाबा जी ने बोला कि जाओ और हनुमान जी के मंदिर में उनको सिंदूर चढ़ाओ और
प्रसाद चढ़ाओ और उसी सिंदूर को अपने बेटे के सर पे तिलक लगाओ और प्रसाद खिलाओ वो
ठीक हो जायेगा। उस आदमी ने कहा कि मैं भगवान को नहीं मानता मेरे लिए तो पत्थर है पर
बेटे के लिए करूँगा। और उसने जा कर जो बाबा जी ने बताया वो किया पर बेटे को कोई फायदा
न हुआ। वो झट बाबा जी के पास पहुंचा और बोला कि झूठ बोलते हो ? मेरे बेटे को कुछ आराम
नहीं हुआ। बाबा जी बोले कि तुमने भगवान को पूजा कहा तुमने तो पत्थर को पूजा, और पत्थर
किसी को सुख नहीं देता पहले उस पत्थर को भगवान मानो तब तुम्हें फल मिलेगा। फिर बाबा जी
ने खुद उस मंदिर जा कर प्रसाद, सिंदूर चढ़ाया और उस बच्चे के मस्तक पर तिलक किया और
प्रसाद खिलाया और वो बच्चा स्वस्थ हो गया।"
इसलिए तुम्हारे भीतर परमात्मा के प्रति अटूट श्रद्धा होनी चाहिए, और जब श्रद्धा होगी, विश्वास
होगा तो हो नहीं सकता कि तुम निराश हो जाओ। एक और बात है कि इस प्रसंग में भी आपने
देखा कि वो व्यक्ति डॉक्टर के पास नहीं गया कि मेरा बच्चा क्यों नहीं ठीक हुआ पर बाबा जी
के पास झट से चला गया, इसका कारण है कि हम संतो को निचा दिखाने में थोड़ा भी विलम्ब
नहीं करते। और इसका कारण है कि हम मे अपने धर्म के प्रति कोई श्रद्धा नहीं है, हम खुद अपने
धर्म कि निंदा करते हैं। पर याद रखीये अगर धर्म नहीं तो हम नहीं। इसलिए अपने धर्म पर,
साधू
- सन्तो पर, भगवान पर श्रद्धा, विश्वास बना कर रखे।
इच्छा पूरी होगी या नहीं और उसी का परिणाम है कि हमें वो नहीं मिलता जो हम चाहते हैं।
तुम्हें परमात्मा पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए और जब तुम्हारा विश्वास पूर्ण होगा तो तुम्हें
निराश नहीं होना पड़ेगा। उसी के उदाहरण स्वरुप एक सुन्दर प्रसंग है।
"एक आदमी था जो पढ़ा लिखा था और खुद को बहुत मॉडर्न मानता था। अपने नौकरो को भी
डाँटता था तो अंग्रेजी में, अपने कुत्तों से भी बात करता तो अंग्रेजी में। एक बार कि बात उसके
बेटे कि तबियत ख़राब हो गयी तो उसने तुरंत डॉक्टर को दिखाया तो कुछ फायदा नहीं हुआ।
और भी कई डॉक्टरों को दिखाया तो कोई फायदा नहीं हुआ, फिर उसने हकिमों और वैधों को भी
दिखाया तो भी कोई फायदा नहीं हुआ। अब तो वो आदमी बहुत परेशान हो गया।
एक दिन उसके घर एक बाबा आये और बोले कि मैं उसे ठीक कर सकता हूँ। उसने कहा कि बड़े
- बड़े डॉक्टर नहीं कर सके तुम क्या करोगे ? पर बेटे के लिए ये भी कर लूंगा। बताओ क्या
करना है ? बाबा जी ने बोला कि जाओ और हनुमान जी के मंदिर में उनको सिंदूर चढ़ाओ और
प्रसाद चढ़ाओ और उसी सिंदूर को अपने बेटे के सर पे तिलक लगाओ और प्रसाद खिलाओ वो
ठीक हो जायेगा। उस आदमी ने कहा कि मैं भगवान को नहीं मानता मेरे लिए तो पत्थर है पर
बेटे के लिए करूँगा। और उसने जा कर जो बाबा जी ने बताया वो किया पर बेटे को कोई फायदा
न हुआ। वो झट बाबा जी के पास पहुंचा और बोला कि झूठ बोलते हो ? मेरे बेटे को कुछ आराम
नहीं हुआ। बाबा जी बोले कि तुमने भगवान को पूजा कहा तुमने तो पत्थर को पूजा, और पत्थर
किसी को सुख नहीं देता पहले उस पत्थर को भगवान मानो तब तुम्हें फल मिलेगा। फिर बाबा जी
ने खुद उस मंदिर जा कर प्रसाद, सिंदूर चढ़ाया और उस बच्चे के मस्तक पर तिलक किया और
प्रसाद खिलाया और वो बच्चा स्वस्थ हो गया।"
इसलिए तुम्हारे भीतर परमात्मा के प्रति अटूट श्रद्धा होनी चाहिए, और जब श्रद्धा होगी, विश्वास
होगा तो हो नहीं सकता कि तुम निराश हो जाओ। एक और बात है कि इस प्रसंग में भी आपने
देखा कि वो व्यक्ति डॉक्टर के पास नहीं गया कि मेरा बच्चा क्यों नहीं ठीक हुआ पर बाबा जी
के पास झट से चला गया, इसका कारण है कि हम संतो को निचा दिखाने में थोड़ा भी विलम्ब
नहीं करते। और इसका कारण है कि हम मे अपने धर्म के प्रति कोई श्रद्धा नहीं है, हम खुद अपने
धर्म कि निंदा करते हैं। पर याद रखीये अगर धर्म नहीं तो हम नहीं। इसलिए अपने धर्म पर,
साधू
- सन्तो पर, भगवान पर श्रद्धा, विश्वास बना कर रखे।
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