Thursday 21 November 2013

सत्य एक है परन्तु ज्ञानी उसे विभिन्न नामो से पुकारते हैं

"एकं सत्या विप्र: बहुदं वदन्ति" ::

सत्य एक है परन्तु ज्ञानी उसे विभिन्न नामो से पुकारते हैं अर्थात ईश्वर ही सत्य है परन्तु लोग उन्हें कई नामो से पुकारते हैं एक समय की बात है की महर्षि गौतम भगवान शंकर को खाने पर आमंत्रित किया । उनके इस आग्रह को शिव जी ने स्वीकार कर लिया उनके साथ चलने के लिए भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी भी तैयार हो गए ।महर्षि के आश्रम मे पहुच कर तीनो वहाँ बैठ गए ।भोले बाबा और श्री हरी विष्णु एक शय्या पर लेटकर बहुत देर तक प्रेमालाप करते रहे ।इसके बाद उन दोनो ने आश्रम के पास ही एक तालाब मे नहाने चले गए वहा पर भी वे बहुत देर तक जलक्रीडा करते रहे ।भगवान शिव जी ने पानी मे खडे श्री हरी पर जल की कोमल बुन्दो से प्रहार किया इस प्रहार को विष्णु जी सहन ना कर सके और अपनी आँखें मुँद ली। इस पर भी भगवान शिव जी को संतोष नही मिला और वे झट से कुदकर वे विष्णु जी के कंधे पर चढ गए और भगवान विष्णु को कभी पानी मे दबा देते तो कभी पानी के उपर ले आते इस प्रकार बार-बार तंग करने पर विष्णु जी ने भी अब शिव जी को पानी मे दे मारा । दोनो के इस प्रकार के खेल को देखकर देवता गण हर्षित हो रहे थे और दोनो की लीला को देखकर मन ही मन उन्हे प्रणाम कर रहे थे। उसी समय नारद जी वहाँ से गुजर रहे थे ये लीला देखकर वे सुंदर वीणा बजाने लगे और गाना भी गाने लगे उनके साथ शिव जी भी भीगे शरीर मे ही सुर से सुर मिलाने लगे फिर तो विष्णु जी भी पानी से बाहर आकर म्रदंग बजाने लगे ।जब ब्रह्मा जी ने स्वर सुना तो फिर वे भी मस्ती के इस क्रम मे शामिल हो गए।बची-खुची जो भी कसर थी वो श्री हनुमान जी ने पुरी कर दी जब वे राग आलापने लगे तो सभी चुप हो कर शान्ति से उनका संगीत सुनने लगे ।सभी देव,नाग,किन्नर,गन्धर्व आदि उस अलौकिक लीला को देख रहे थे और अपनी आँखें धन्य कर रहे थे। उधर महर्षि गौतम ये सोचकर परेशान थे कि स्नान को गए मेरे पुज्य अतिथि गण अब तक क्यो नही आए उन्हे चिन्ता हो रही थी और इधर तो भगवान को धमाचोकड़ी मचाने से फुर्सत कहा। सब एक दुसरे के गाने बजाने मे इतने मगन थे कि उन्हे ये भी याद न रहा कि वे महर्षि गौतम के अतिथि बन यहाँ आए हैं ।फिर महर्षि गौतम ने बड़ी ही मुश्किल से उन्हे भोजन के लिए मनाया आश्रम लेकर आए और भोजन परोसा ।तीनो ने भोजन करना शुरु किया ।इसके बाद हनुमान जी ने फिर संगीत गाना शुरु कर दिया।सुर मे मस्त शिव जी ने अपने एक पैर को हनुमान जी के हाथों पर और दुसरे पैर को हनुमान जी सीने,पेट,नाक,आँख आदि अंगो का स्पर्श कर वही लेट गये।यह देखकर भगवान विष्णु ने हनुमान से कहा - "हनुमान तुम बहुत ही भाग्यशाली हो जो शिव जी के चरण तुम्हारे शरीर को स्पर्श कर रहे है ।जिस चरणो की छाव पाने के लिए सभी देव-दानव आदि लालायीत रहते है उन चरनो की छाव सहज ही तुम्हे प्राप्त हो गये है । अनेक साधु-संत और कई साधक जन्मो तक तपस्या और साधना करते है फिर भी उन्हे ये शौभाग्य प्राप्त नही होता।मैंने भी सहस्त्र कमलो से इनकी अर्चना की थी पर ये सुख मुझे भी न मिला। आज मुझे तुमसे इर्श्या का अनुभव हो रहा हैं ।सभी लोको मे यह बात सब जानते है कि नारायण भगवान शंकर के परम प्रितीभाजन है पर यह देखकर मुझे संदेह-सा हो रहा है।" यह सुन कर भगवान शिव शंकर बोल उठे - "हे नारायण ये क्या कह रहे है आप तो मुझे प्राणो से भी प्यारे है। औरो की क्या बात है देवी पार्वती भी आपसे अधिक प्रिय नही है मेरे लिए आप तो जानते ही है।" भगवती पार्वती जी उधर कैलाश मे ये सोचकर परेशान हो रही थीं कि आज कैलाशपति शिव जी कहा चले गये कही मुझे से रुठकर तो नही चले गये।यह सोचकर देवी पार्वती शिव जी को ढुढते- ढुढते आश्रम पहुचे और पता चला कि मेरे स्वामी शिव जी, विष्णु जीऔर ब्रह्मा जी महर्षि गौतम के यहा मेहमानी मे गये हैं ।वे भी महर्षि गौतम का परोसा खाना खाया । इसके बाद विनोदवश देवी पार्वती शिव जी के वेश-भुशा को लेकर हंसी उड़ाई और बहुत सी ऐसी बाते कही जो अक्सर पति पत्नि प्रेम से एक दुसरे को कुछ भला बुरा कहते रहते हैं।ये बात सुनकर भगवान विष्णु जी से रहा नही गया और वे बोल उठे - "देवी! ये आप क्या कह रहे है।मुझसे आपकी बात सही नही जा रही। जहाँ शिव निन्दा होती है वहाँ मैं प्राण धारण कर नही रह सकता।" इतना कहकर श्री हरी ने अपने नाखुनो से अपने ही सिर को फाड़ने लगे ।यह देखकर सभी ने उन्हे रोकने की कोशिश की पर वे नही मान रहे थे फिर शिव जी के अनुरोध पर वे रुके। ऐसे ही एक बार नारद मुनि जो की स्वयं ही विष्णु के अवतार शिव जी से कहने लगे हे महादेव आप ही इस जगत के स्वामी है आप से बड़ा इस जगत मैं कोई नहीं है आप नारायण से से भी ऊपर हैं तब महादेव अपने कानो को बंद कर क्रोधित होकर बोले मैं इस जगत का स्वामी नहीं हूँ और जहाँ तक नारायण से ऊपर होने की बात हैं मैं तो उनकी की दया का पात्र भी नहीं हूँ मैं तो एक बहुत ही अधम से अधम व्यक्ति हूँ जो की उनके भक्तो के जो भक्त है उनकी सेवा करता हूँ इनके इस प्रेम को देखकर हमे ये समझना चाहिए कि ये दोनो किसी भी प्रकार से अलग नही है दोनों एक ही हैं बस नाम अलग अलग हैं

No comments:

Post a Comment