Friday 23 August 2013

देवताओं और राक्षसों में आपसी मतभेद के कारण

पुराने समय की बात है
 देवताओं और राक्षसों में आपसी मतभेद के कारण शत्रुता बढ़ गईआए दिन दोनों पक्षों में लड़ाई होती रहती थी। एक दिन राक्षसों के आक्रमण से सभी देवता भयभीत हो गए। वे भागते-भागते ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी की राय से सभी लोग जगद्गुरु की शरण में जाकर प्रार्थना करने लगे। देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान ने कहा, ‘‘देवताओतुम लोग दानवराज बलि से प्रेमपूर्वक मिलो। उनको ही अपना नेता मानकर समुद्र-मथने की तैयारी करो। समुद्र मंथन के अंत में अमृत निकलेगा। उसे पीकर तुम लोग अमर हो जाओगे।’’ यह कहकर भगवान अंतर्धान हो गये।

इसके बाद देवताओं ने बलि को नेता मानकर वासुकि नाग को रस्सी और मंदराचल को मथानी बनाकर समुद्र-मंथन शुरू किया परन्तु मंथन शुरू होने पर मंदराचल ही समुद्र में डूबने लगा। सभी लोग परेशान हो गए। अंत में निराश होकर लोगों ने भगवान का सहारा लिया। भगवान तो सब जानते ही थे। उन्होंने हंस कर कहा, ‘‘सब कार्यों के प्रारंभ में गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। बिना उनकी पूजा के कार्य सिद्ध नहीं होता।’’ यह सुनकर 




Other
  हिँदुत्व की दहड़-
3          एक बार अकबर ने बीरबल से पूछाः "तुम्हारेभगवान और हमारे खुदा में बहुत फर्क है।हमाराखुदा तो अपना पैगम्बर भेजता है जबकि तुम्हारा भगवानबारबार आता है। यह क्या बात है ?" बीरबलः "जहाँपनाह ! इस बात का कभी व्यवहारिक तौर पर अनुभव करवा दूँगा।आप जरा थोड़े दिनोंकी मोहलत दीजिए।" चार-पाँच दिन बीत गये। बीरबल ने एक आयोजन किया। अकबर को यमुनाजी में नौकाविहार कराने ले गये। कुछ नावों की व्यवस्था पहलेसे ही करवा दी थी। उस समय यमुनाजी छिछली  थीं। उनमेंअथाह जल था। बीरबल ने एक युक्ति की कि जिस नाव में अकबर बैठा था उसी नाव में एक दासी को अकबर के नवजात शिशु के साथ बैठा दिया गया।सचमुच में वह नवजात शिशु नहीं था। मोम काबालक पुतलाबनाकर उसे राजसी वस्त्र पहनाये गये थे ताकि वह अकबरका बेटा लगे। दासी को सब कुछ सिखा दिया गया था। नाव जब बीच मझधार में पहुँची और हिलने
लगी तब 'अरे.... रे... रे.... .... .....'कहकर दासी ने स्त्री चरित्रकरके बच्चे को पानी में गिरा दिया और रोने बिलखने लगी। अपने बालक को बचाने-खोजने के लिए अकबर धड़ाम सेयमुना में कूद पड़ा। खूबइधर-उधर गोते मारकर, बड़ी मुश्किल से उसने बच्चे को पानी में से निकाला। वह बच्चा तो क्या था मोम का पुतला था। अकबर कहने लगाः "बीरबल ! यह सारी शरारत तुम्हारी है। तुमने मेरी बेइज्जती करवाने केलिए
ही ऐसा किया।" बीरबलः "जहाँपनाह ! आपकी बेइज्जती के लिए नहीं, बल्कि आपके प्रश्न का उत्तरदेने के लिएऐसा ही किया गया था। आप इसे अपना शिशु  समझकर नदी में कूद पड़े। उससमय आपको पता तो था ही इनसबनावों में कई तैराक  बैठे थे, नाविक भी बैठे थे और हम भी तो थे !
आपने हमको आदेश क्यों नहींदिया ? हम कूदकरआपके बेटे की रक्षा करते !"
अकबरः "बीरबल ! यदि अपना बेटा डूबता हो तो अपने मंत्रियों को या तैराकों कोकहने की फुरसत कहाँ रहती है? खुद ही कूदा जाता है। बीरबलः "जैसे अपने बेटे की रक्षा के लिए आप खुद कूद पड़े, ऐसे ही हमारे भगवान जब अपने  बालकों को संसार एवं संसार की मुसीबतों में डूबता हुआ देखते हैं तो वे पैगम्बर- वैगम्बरको नहींभेजते, वरन् खुद ही प्रगट होते हैं। वे अपने बेटों कीरक्षा के लिए आप ही अवतार ग्रहण करते है और संसार को आनंद तथा प्रेम के प्रसाद से धन्य करते हैं। आपके उस दिन के सवाल का यही जवाब है
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धर्म
धर्म शब्द संस्कृत की ‘धृ’ धातु से बना है जिसका अर्थ होता है धारण करना  परमात्मा की सृष्टि को धारण करने या बनाये रखने के लिए जो कर्म और कर्तव्य आवश्यक हैं वही मूलतधर्म के अंग या लक्षण हैं  उदाहरण के लिए निम्न श्लोक में धर्म के दस लक्षण बताये गये हैं 
धृतिक्षमा दमो स्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रह
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम् 

विपत्ति में धीरज रखनाअपराधी को क्षमा करनाभीतरी और बाहरी सफाईबुद्धि को उत्तम विचारों में लगानासम्यक ज्ञान का अर्जनसत्य का पालन ये उत्तम कर्म हैं और मन को बुरे कामों में प्रवृत्त  करनाचोरी  करनाइन्द्रिय लोलुपता से बचना,क्रोध  करना ये चार उत्तम अकर्म हैं 

अहिंसा परमो धर्मसर्वप्राणभृतां वर 
तस्मात् प्राणभृतसर्वान्  हिंस्यान्मानुषक्वचित् 

अहिंसा सबसे उत्तम धर्म हैइसलिए मनुष्य को कभी भीकहीं भी,किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिए 

 हि प्राणात् प्रियतरं लोके किंचन विद्यते 
तस्माद् दयां नरकुर्यात् यथात्मनि तथा परे 

जगत् में अपने प्राण से प्यारी दूसरी कोई वस्तु नहीं है  इसीलिए मनुष्य जैसे अपने ऊपर दया चाहता हैउसी तरह दूसरों पर भी दया करे 
जिस समाज में एकता हैसुमति हैवहाँ शान्ति हैसमृद्धि हैसुख हैऔर जहाँ स्वार्थ की प्रधानता है वहाँ कलह हैसंघर्ष हैबिखराव हैदु: हैतृष्णा है 

धर्म उचित और अनुचित का भेद बताता है  उचित क्या है और अनुचित क्या है यह देशकाल और परिस्थिति पर निर्भर करता है  हमें जीवनऱ्यापन के लिए आर्थिक क्रिया करना है या कामना की पूर्ति करना है तो इसके लिए धर्मसम्मत मार्ग या उचित तरीका ही अपनाया जाना चाहिए  हिन्दुत्व कहता है -

अनित्यानि शरीराणि विभवो नैव शाश्वत
नित्यं सन्निहितो मृत्युकर्र्तव्यो धर्मसंग्रह

यह शरीर नश्वर हैवैभव अथवा धन भी टिकने वाला नहीं हैएक दिन मृत्यु का होना ही निश्चित हैइसलिए धर्मसंग्रह ही परम कर्त्तव्य है 

सर्वत्र धर्म के साथ रहने के कारण हिन्दुत्व को हिन्दू धर्म भी कहा जाता है 
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''प्रिये गौ माता प्रिये गोपाल''

आज जहा देखो वही क्रिशन भक्त नज़र आएंगे परन्तु क्रिशन भगवान् जिनके भक्त थे आज वो नज़र में बहुत कम आएंगे।
और आप सब बहुत अछि तरह से जानते है क्रिशन भगवान् की इष्ट कोन है?
क्रिशन प्रभु की इष्ट हमारी धरती स्वरूपा गौ माता है, जिसको प्रणाम करना तो बहुत दूर की बात हम कभी उनके दर्शन करने के बारे में भी नहीं सोचते, अपितु आज उस्सी क्रिशन की इष्ट का हम अप्रत्यक्ष (जाने-अनजाने) में मास खा रहे है, और फिर भी हम अपने-आप को भक्त कहते है, अभी हमने केवल क्रिशन या अन्य देवताओ का चित्र पकड़ा है, जिस दिन इनका चरित्र पकड़ो गे उस दिन आपको भक्त की परिभाषा मालूम पड़ेगी। केवल राम- या क्रिशन- रटने वाला भक्त नहीं होता अगर ऐसा होने लग जाए तो देश की आदि से ज्यादा आबादी फिर तो भक्त है।
हम प्रेम तो प्रभु से करते हैपरन्तु हमारी पसंद जगत की होती है तो भला ये प्रेम है या दोखा। क्या कभी आपने अपने इष्ट के बारे में जान्ने की कोशिश की हैयानि उनकी दिनचर्याआहारव्यवहारस्वाभाव आदि। क्या ये देवता या आपके राधा-क्रिशन कोल्ड-ड्रिंक पीते है या ये चिप्स खाते हैबिस्कुट ,चोकलेट,पिज़्ज़ा,केक या बर्गर खाते है।
नहीं ! जितने भी देवीदेवता है ये केवल गो-गवयो का ही सेवन करते है यानि कीगौ माता के दूधदही ,घी ,छाछगौमूत्र,गोबर आदि।
एक बात और आप अछि तरह से समज लीजिये की बिना सात्विक आहार के आप अध्यातम के मार्ग में प्रवेश भी नहीं पा सकते और इस धरती पर यदि कोई सात्विक आहार प्रदान करने वाली है तो वो केवल और केवल हमारी प्यारी गौ माता है,जिसका आज बहुत तेज़ी से विनाश हो रहा है।
अगर देश में जितने वैष्णव है या जितने अपने आप को भक्त मानते है केवल उतने ही लोग अगर गौमूत्र और गोबर का अपने जीवन में प्रयोग करने लग जाए तो हमारी तो आत्म शुदी होएगी परन्तु साथ ही साथ गौ सेवा का फल भी मिलेगा।
अब ये निर्णय आपको करना है की आपको गौ मास खाना है या फिर गौ गवयो का सेवन करना है

''प्रिये गौ माता प्रिये गोपाल''
                                          

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 जय जय श्री राधे   जय जय श्री राधे ॥॥ जय जय श्री राधे 
ये शरीर हमारा  तो था  है और  ही रहेगा अगर हमारा कुछ है तो वो है हमारी आत्मा तो क्यों  हम अपने शरीर को संवारने की बजाय अपनी आत्मा को संवारें। यह कटु सत्य है की इस शरीर को एक  एक दिन नष्ट होना है लेकिन हमारी आत्मा अजर-अमर है। पाप हमारा शरीर करता है और भोगना हमारी आत्मा को पड़ता है तो फिर हम ऐसा काम क्यों करेंजिससे मृत्यु के पश्चात् हमारी आत्मा को कष्ट होक्यों  भक्त ध्रुव और भक्त प्रह्लाद की तरह ऐसी भक्ति करें जिससे मृत्यु के पश्चात् हमारी आत्मा इस जीवन-मरण के चक्कर से मुक्त होकर प्रभु के श्री चरणों की सेवा में विलीन हो जाए।

परीक्षित जी महाराज को जब पता चला कि सातवें दिन उनकी मृत्यु निश्चित है तो उन्होंने शुकदेव जी से पूछा जिसकी मृत्यु निश्चित हो उसे क्या करना चाहिए और मृत्यु हमारे जीवन का कटु सत्य है। हम इस संसार में खाली हाथ आए थे और खाली हाथ ही जायंगे। यह पता होने के बावजूद भी हम अपना सारा जीवन सांसारिक भोग विलास में गुजार देते हैं और प्रभु ने हमें जिस कार्य के लिए मानव जीवन दिया हैउस से हम भटक जाते हैं। शुकदेव जी ने परीक्षित जी महाराज से कहा हे राजन् जिस की मृत्यु निश्चित हो उसे भागवत कथा श्रवण करनी चाहिए। और मृत्यु तो हमारी भी निश्चित हैऔर हमें भी मरना है तो मरने से पहले ही सारे पापो से मुक्त हो जाये और मोक्ष को प्राप्त होऔर ये होगा सिर्फ श्रीमद भागवत कथा के श्रवण करने से  इसलिए हमें भी सच्चे मन से श्रीमद भागवत कथा श्रवण करनी चाहिए और भगवान की भक्ति करनी चाहिए।
ऐसे लोग बड़े ही भाग्यशाली होते हैं जिन्हें भगवान के उत्सवों में शामिल होने का अवसर प्राप्त होता हैऔर जो सच्चे भक्त  धर्म की रक्षा करने वाले होते हैं उन्हें भगवान स्वंय ही अपने उत्सवों में शामिल होने के लिए बुला लेते हैं। आज जो कुछ भी हमारे पास है जिस पर हम अपना हक़ जमाते हैं वो सब कुछ हमें परमात्मा की देन है। ये सुख-सुविधाएं,धन-दौलत सब एक पानी के बबूले की तरह है। जिस प्रकार पानी का बबूला हमेशा नहीं रहता उसी प्रकार ये धन-दौलत,सुख-सुविधाएं हमेशा हमारे पास नहीं रहतींअगर हमारे पास कुछ रहता है तो वो है भगवान की भक्तिहालात चाहे जो भी हों भगवान की भक्ति,भगवान का नाम रूपी धन हम से कोई नहीं छीन सकता। फिर भी इंसान उसी के पीछे भागता है जिसे एक  एक दिन नष्ट होना है और जो अजर-अमर है जिसको प्राप्त कर लेने के बाद हमारा जीवन ही नहीं हमारी मृत्यु भी संवर जाएगी उसे प्राप्त करने की कोशिश नहीं करता।

ये भागवत कथा हमें भक्त बनाती है और सबसे सुंदर बात यह कि भगवान भी वही करते हैं जो भक्त चाहता है। आज हमारे देश के युवा बच्चे संस्कृति और सभ्यता को भूलते जा रहे हैं इसलिए जरुरी है की माता-पिता अपने साथ अपने बच्चों को भी कथा सुनवाने अवश्य लायें क्योंकि जिस घर की नींव कमजोर होती है वह घर कभी भी गिर सकता है और ये बच्चे हमारे आने वाले कल का भविष्य हैं अगर ये अपने धर्म को नहीं जानेंगे तो आने वाले समय में हमारा धर्म कमजोर पड जायेगा इसलिए अतिआवश्यक है कि युवा बच्चे धर्म के रास्ते पर चलें और दूसरों को भी इस रास्ते पर चलाने की कोशिश करें।

 जय जय श्री राधे   जय जय श्री राधे ॥॥  जय जय श्री राधे 

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इस पृथ्वी मे मनुष्य से ज्यादा बुद्धिमान , ज्ञानवान एवं शक्ति संपन्न कोई भी नहीं है 
इस अभ्यास को अपने जीवन का अंग बना लें  व्यक्तित्व चमक उठेगा  प्रातःकाल जल्दी उठकर , स्नानादि से निवृत्त होकर केवल एक घन्टे , किसी सीधे आसन मे बैठकर केवल अपने दिमाग को खाली रखकर आती - जाती श्वास पर ध्यान देने से
क्षीण हुई मानसिक ऊर्जा पुनः लौट आती है  इससे उसकी हर प्रकार की कुशलताएँ खुल
जाती है , जहाँ किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान है 
                                                            




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