हरि व्यापक
सर्वत्र समाना"
परमात्मा को
तुमसे मिलने
में देर
नहीं है।
वो तुरंत
तुम्हारे पास
आ जायेगा।
पर उसको
दिल से
बुलाओ तो,
पुकारो तो।
और जिस
दिन तुम्हारा
पुकार सच्चा होगा
वो तुम्हारे
सामने होगा।
कहने को
हम कहते
हैं की
श्री कृष्ण
के सच्चे
प्रेमी हैं,
पर दिल
से पूछो
क्या तुम
सच्चे प्रेमी
हो ? जब
अपने बेटे
को खिलाने
बैठोगे तो
जिद कर
के कहोगे!
बेटा एक
आलू के
पराठे और
ले ले।
और जब
भगवान को
भोग लगाओगे
तो पुरानी
किशमिश वो
भी इतने
छोटे पात्र
में जिसमे
पाँच दाने
हीं आएगी
वो रखते
हो और
कहते हो
"तेरा तुझको
अर्पण" अरे
भगवान ने
तुम्हें इतना
दिया और
पुरानी किशमिश
को कहते
हो "तेरा
तुझको अर्पण"
ये दिया
है भगवान
ने तुम्हें
? अब बोलोगो
भगवान खाते
नहीं है।
अरे खायेगे
क्यों नहीं
तुम्हारा भाव
तो होना
चाहिए। जब
तक भगवान
को मूर्ति
मानोगे वो
तुम्हारे लिए
मूर्ति हीं
रहेगा। जब
वो सबरी
के जूठे
बेर खा
सकता है,
कर्मा की
खिचड़ी खा
सकता है,
वो तुम्हारे
भोग नहीं
खायेगा। खायेगा
जरुर खायेगा
उसके लिए
ह्रदय में
प्रेम जगाओ।
और जिस
दिन भगवान
के लिए
तुम्हारे मन
में सच्चा
प्रेम जाग
जायेगा वो
तुम्हें दर्शन
भी देगा
और खायेगा
भी।
और उससे प्रेम करने का साधन है भगवान की कथा। खुद भी सुनो और अपने बच्चो को भी कथा में लाओ। कुछ लोग कहते हैं कथा बुढ़ापे में सुनना चाहिए। अब बताओ अगर कोई बुढ़ापे में कथा सुनता है और उसे कथा में पता चलेगा की चोरी, बेईमानी, इर्ष्या, दुष्टता, काम, क्रोध, लोभ नहीं करनी चाहिए, तो उससे क्या फायदा। अस्सी साल के उम्र में सब तो पाप कर चूका, अब जानने से क्या फायदा। अब तो पाप कर लिया अब तो उसका दण्ड भोगना हीं बाकि है। और अगर बचपन में किसी को पता चलेगा की क्या सही और क्या गलत तो उसका पूरा जीवन सुधर जायेगा और वो हर तरह के पाप करने से बच जायेगा। इस लिए बचपन से हीं, जवानी से हीं कथा सुनो। अगर कुछ भी बुरा होता है तो उसका सिर्फ और सिर्फ कारण है पाप करने वाला धर्म को नहीं जानता है। उसे इस बात का ज्ञान नहीं है की पाप करने का परिणाम मुझे भुगतना हीं पड़ेगा। जितना उसने किसी का बुरा किया है उससे कई गुना अधिक उसको भोगना पड़ेगा। क्यों की प्रकृति का नियम है आप जो उसे देते हो वो कई गुना कर के लौटा देती है।जैसे आपने एक बिज डाला और उससे विशाल पेड़ हुआ और अनेको फल आपको प्राप्त हुआ। उसी प्रकार पाप करने पर उसका परिणाम कई गुना हो के आपको प्राप्त होता है। इस लिए पाप से बचो और सत्मार्ग पे चलो और प्रभु की भक्ति करो।
और उससे प्रेम करने का साधन है भगवान की कथा। खुद भी सुनो और अपने बच्चो को भी कथा में लाओ। कुछ लोग कहते हैं कथा बुढ़ापे में सुनना चाहिए। अब बताओ अगर कोई बुढ़ापे में कथा सुनता है और उसे कथा में पता चलेगा की चोरी, बेईमानी, इर्ष्या, दुष्टता, काम, क्रोध, लोभ नहीं करनी चाहिए, तो उससे क्या फायदा। अस्सी साल के उम्र में सब तो पाप कर चूका, अब जानने से क्या फायदा। अब तो पाप कर लिया अब तो उसका दण्ड भोगना हीं बाकि है। और अगर बचपन में किसी को पता चलेगा की क्या सही और क्या गलत तो उसका पूरा जीवन सुधर जायेगा और वो हर तरह के पाप करने से बच जायेगा। इस लिए बचपन से हीं, जवानी से हीं कथा सुनो। अगर कुछ भी बुरा होता है तो उसका सिर्फ और सिर्फ कारण है पाप करने वाला धर्म को नहीं जानता है। उसे इस बात का ज्ञान नहीं है की पाप करने का परिणाम मुझे भुगतना हीं पड़ेगा। जितना उसने किसी का बुरा किया है उससे कई गुना अधिक उसको भोगना पड़ेगा। क्यों की प्रकृति का नियम है आप जो उसे देते हो वो कई गुना कर के लौटा देती है।जैसे आपने एक बिज डाला और उससे विशाल पेड़ हुआ और अनेको फल आपको प्राप्त हुआ। उसी प्रकार पाप करने पर उसका परिणाम कई गुना हो के आपको प्राप्त होता है। इस लिए पाप से बचो और सत्मार्ग पे चलो और प्रभु की भक्ति करो।
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