Tuesday, 27 August 2013

कृष्ण जन्माष्टमी

[प्रीति झा] स्कन्दपुराण के मतानुसार जो भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को नहीं करता, वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। ब्रह्मपुराण का कथन है कि भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाइसवें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। यदि दिन या रात में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करें। जन्माष्टमी के व्रत और पूजन का भी खास महत्व है।
कृष्ण एक ऐसा अवतार जिसके दर्शन मात्र से प्राणियो के, घट घट के संताप, दु:ख, पाप मिट जाते है। जिन्होंने इस श्रृष्टि को गीता का उपदेश दे कर उसका कल्याण किया, जिसने अर्जुन को कर्म का सिद्धांत पढाया, यह उनका जन्मोत्सव है। हमारे वेदों में चार रात्रियों का विशेष महातव्य बताया गया है दीपावली जिसे कालरात्रि कहते है, शिवरात्रि महारात्रि है,श्री कृष्ण जन्माष्टमी मोहरात्रि और होली अहोरात्रि है।
जिनके जन्म के संयोग मात्र से बंदी गृह के सभी बंधन स्वत: ही खुल गए, सभी पहरेदार घोर निद्रा में चले गए, मां यमुना जिनके चरण स्पर्श करने को आतुर हो उठी, उस भगवान श्री कृष्ण को सम्पूर्ण श्रृष्टि को मोह लेने वाला अवतार माना गया है। इसी कारण वश जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है।
जन्माष्टमी का व्रत को व्रतराज कहा गया है। इसके सविधि पालन से प्राणी अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्य राशि प्राप्त कर सकते है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं।
भविष्य पुराण के जन्माष्टमी व्रत-माहात्म्य में यह कहा गया है कि जिस राष्ट्र या प्रदेश में यह व्रतोत्सव किया जाता है, वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का ताण्डव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते हैं तथा फसल खूब होती है। जनता सुख-समृद्धि प्राप्त करती है। इस व्रतराज के अनुष्ठान से सभी को परम श्रेय की प्राप्ति होती है। व्रतकर्ता भगवत्कृपा का भागी बनकर इस लोक में सब सुख भोगता है और अन्त में वैकुंठ जाता है। कृष्णाष्टमी का व्रत करने वाले के सब क्लेश दूर हो जाते हैं। दुख-दरिद्रता से उद्धार होता है।
गृहस्थों को पूर्वोक्त द्वादशाक्षर मंत्र से दूसरे दिन प्रात: हवन करके व्रत का पारण करना चाहिए। जिन भी लोगो को संतान न हो, वंश वृद्धि न हो, पितृ दोष से पीड़ित हो, जन्मकुंडली में कई सारे दुर्गुण, दुर्योग हो, शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाले को एक सुयोग्य,संस्कारी,दिव्य संतान की प्राप्ति होती है, कुंडली के सारे दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जाते है और उनके पितरो को नारायण स्वयं अपने हाथो से जल दे के मुक्तिधाम प्रदान करते है। जिन परिवारों में कलह-क्लेश के कारण अशांति का वातावरण हो, वहां घर के लोग जन्माष्टमी का व्रत करने के साथ निम्न किसी भी मंत्र का अधिकाधिक जप करें-
ऊॅ नमो नारायणाय
ऊॅ नमों भगवते वासुदेवाय
ऊॅ श्री कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणत: क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नम:॥
अथवा
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवाय
गोविन्द, गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवाय
उपर्युक्त मंत्र में से किसी का भी का जाप करते हुए सच्चिदानंदघन श्रीकृष्ण की आराधना करें। इससे परिवार में व कुटुंब में व्याप्त तनाव, समस्त प्रकार की समस्या, विषाद, विवाद और विघटन दूर होगा खुशियां घर में वापस लौट आएंगी। गौतमी तंत्र में यह निर्देश है- प्रकर्तव्योन भोक्तव्यं कदाचन। कृष्ण जन्मदिने यस्तु भुड्क्ते सतुनराधम:। निवसेन्नर केघोरे यावदाभूत सम्प्लवम्॥ अर्थात- अमीर-गरीब सभी लोग यथाशक्ति-यथासंभव उपचारों से योगेश्वर कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। जब तक उत्सव सम्पन्न न हो जाए तब तक भोजन कदापि न करें।
भगवान कृष्ण के व्रत-पूजन-
उपवास के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यकमरें से निवृत्त हो जाएं। पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें।
इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें-
ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥
अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए सूतिका गृह नियत करें।
तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो तो अति उत्तम है। इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें।
पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमश: निर्दिष्ट करना चाहिए। फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें--
प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामन:।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नम:।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।
अंत में रतजगा रखकर भजन-कीर्तन करें। जन्माष्टमी के दिन रात्रि जाग कर भगवान का स्मरण व स्तुति करें अगर नहीं तो कम से कम बारह बजे रात्रि तक कृष्ण जन्म के समय तक अवश्य जागरण करें। साथ ही प्रसाद वितरण करके कृष्ण जन्माष्टमी पर्व मनाएं।
इस श्रीकृष्णस्तोत्र का पाठ पूजा के समय प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए। इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान श्रीकृष्ण अपने साधक पर नि:सन्देह प्रसन्न होते है। अभय को प्रदान करने वाला और सदैव प्रसन्नचित्त रखने में समर्थ यह स्तोत्र अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
विप्रपत्‍‌न्य ऊचु:
त्वं ब्रह्म परमं धाम निरीहो निरहंकृति:।
निर्गुणश्च निराकार: साकार: सगुण: स्वयम॥1॥
साक्षिरूपश्च निर्लिप्त: परमात्मा निराकृति:।
प्रकृति: पुरुषस्त्वं च कारणं च तयो: परम॥2॥
सृष्टिस्थित्यंत विषये ये च देवास्त्रय: स्मृता:।
ते त्वदंशा: सर्वबीजा ब्रह्म-विष्णु-महेश्वरा:॥3॥
यस्य लोम्नां च विवरे चाऽखिलं विश्वमीश्वर:।
महाविराण्महाविष्णुस्तं तस्य जनको विभो॥4॥
तेजस्त्वं चाऽपि तेजस्वी ज्ञानं ज्ञानी च तत्पर:।
वेदेऽनिर्वचनीयस्त्वं कस्त्वां स्तोतुमिहेश्वर:॥5॥
महदादिसृष्टिसूत्रं पंचतन्मात्रमेव च।
बीजं त्वं सर्वशक्तिनां सर्वशक्तिस्वरूपक:॥6॥
सर्वशक्तीश्वर: सर्व: सर्वशक्त्याश्रय: सदा।
त्वमनीह: स्वयंच्योति: सर्वानन्द: सनातन:॥7॥
अहो आकारहीनस्त्वं सर्वविग्रहवानपि।
सर्वेन्द्रियाणां विषय जानासि नेन्द्रियी भवान।8॥
सरस्वती जडीभूता यत स्तोत्रे यन्निरूपणे।
जडीभूतो महेशश्च शेषो धर्मो विधि: स्वयम॥9॥
पार्वती कमला राधा सावित्री देवसूरपि।
वेदश्च जडतां याति के वा शक्ता विपश्चित:॥10॥
वयं किं स्तवनं कूर्म: स्त्रिय: प्राणेश्वरेश्वर।
प्रसन्नो भव नो देव दीनबन्धो कृपां कुरु॥11॥
इति पेतुश्च ता विप्रपत्‍‌न्यस्तच्चरणाम्बुजे।
अभयं प्रददौ ताभ्य: प्रसन्नवदनेक्षण:॥12॥
विप्रपत्‍‌नीकृतं स्तोत्रं पूजाकाले च य: पठेत।
स गतिं विप्रपत्‍‌नीनां लभते नाऽत्र संशय:॥13॥
॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते विप्रपत्‍‌नीकृतं कृष्णस्तोत्रं समाप्तम ॥

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