Wednesday, 7 August 2013

श्री एकलिंगजी महादेव मंदिर उदयपुर

श्री एकलिंगजी महादेव मंदिर कि उदयपुर से लगभग २२ किमी और नाथद्वारा से लगभग २६ कि.मी. दूर राष्ट्रिय राजमार्ग ४८ (NH48)(Old NH-8) पर कैलाशपुरी नाम के स्थान पर स्थित हैं। श्री एकलिंगजी पहुँचने के लिए उदयपुर से नियमित बस सेवा उपलब्घ हैं। मेवाड़ शैली में पत्थरो से निर्मित श्री एकलिंगजी उदयपुर और मेवाड़ का संबसे विख्यात और विशाल मंदिर है। श्री एकलिंगजी हमारे आराध्य देव भगवान शिव का प्राचीन मंदिर हैं, यहाँ पर स्थित शिवलिंग की मूर्ति के चारों ओर मुख (चेहरा) बने हुए हैं, अर्थात यहाँ पर भगवान शिवजी एक चतुर्मुखी शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। एकलिंगजी के चार चेहरों भगवान शिव के चार रूपों को दर्शाते हैं, जो इस प्रकार हैं:-पूरब दिशा की तरफ का चेहरा सूर्य देव के रूप में पहचाना जाता हैं, पश्चिम दिशा के तरफ का चेहरा भगवान ब्रह्मा को दर्शाता हैं, उत्तर दिशा की तरफ का चेहरा भगवान विष्णु और दक्षिण की तरफ का चेहरा रूद्र स्वयं भगवान शिव का हैं। मंदिर के गर्भगृह का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा में और गर्भगृह के सामने पीतल धातु से बनी शिव के वाहन नन्दी की मूर्ति है। मंदिर परिसर में १०८ देवी-देवताओ के छोटे-छोटे मंदिर स्थित हैं, और इन मंदिरों के बीच में श्री एकलिंग जी मंदिर स्थापित हैं। मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने आज्ञा किसी को भी नहीं हैं, श्री एकलिंग जी दर्शन एवं वंदना कठघरे से बाहर रहकर ही करनी पड़ती हैं। एकलिंगजी मदिर में श्री एकलिंगजी का श्रृंगार फूलो, रत्नों नियमित रूप से प्रतिदिन किया जाता है। मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश वहाँ के पुजारियों से आज्ञा लेकर व उनके द्वारा दिए गए विशेष वस्त्र पहनकर ही मिलती हैं।

श्री एकलिंगजी मेवाड़ के शासक और राजपूतो के मुख्य आराध्य देव हैं। कहा जाता हैं कि मेवाड़ में राजा तो उनके प्रतिनिधि के रूप में शासन किया करता था। युद्ध पर जाने से पहले राजपूत श्री एकलिंग जी आशीर्वाद जरुर लेते थे। श्री एकलिंगजी मंदिर परिसर में मंदिर के इतिहास कि बारे में जानकारी देता हुआ मंदिर ट्रस्ट का एक बोर्ड लगा हुआ था। जिसमे मंदिर के इतिहास के बारे में कुछ इस प्रकार से लिखा हुआ था।

“मंदिर श्री एकलिंगजी, कैलाशपुरी गांव, अंतर्गत श्री एकलिंगजी ट्रस्ट सिटी पैलेस, उदयपुर। मेवाड़ के शासको के इष्टदेव भगवान शिव का यह निजी मंदिर उदयपुर से २२ कि.मी. उत्तर दिशा में स्थित हैं, एवं देश के अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थो में से एक हैं। मूलतः यह मंदिर आठवीं शताब्दी में बापा रावल दवारा बनाया गया परन्तु आक्रान्ताओ ने उसे आंशिक रूप से नष्ट कर दिया। महाराणा मोकल द्वारा मंदिर का पुननिर्माण प्रारम्भ किया गया। मंदिर के दक्षिण द्वार पर लगी प्रशस्ति के अनुसार मंदिर का वर्तमान स्वरुप महाराणा रायमल (1473-1509) द्वारा प्रदान किया गया। आंतरिक गर्भगृह में स्थित अत्यंत आकर्षक श्याम संगमरमर से शिल्पित चतुर्मुखी शिवलिंग महाराणा रायमल द्वारा पंद्रहवी शताब्दी के अंत में स्थापित किया गया। कठघरे और गर्भगृह के बीच के द्वार पर वर्तमान श्री जी मेवाड़ अरविन्द ने किवाड़ पर चांदी कि परत चढ़वाई हैं। मुख्य मंदिर के कठघरे में आम दर्शनार्थियों का प्रवेश वर्जित हैं।“

BY:- Laxman ram jakhar dharasar

No comments:

Post a Comment