Tuesday, 20 August 2013

कभी जल में थल और थल में जल की भ्रान्ति हो जाती है

जैसे कभी - कभी जल में थल और थल में जल की भ्रान्ति हो जाती है उसी तरह ये संसार में सुख है नहीं पर हमें प्रतीत होता है। आज हम उस चीज के पीछे भाग रहे हैं जो हमारे काम का है हीं नहीं। और ये सब हो रहा है हमारी आज्ञानता के कारण, हमें इस बात का ज्ञान हीं नहीं है की क्या हमारे लिए ठीक है और क्या गलत। हम सुख के पीछे भाग रहें हैं पर अपने आत्मा के सुख के पीछे नहीं, हम भागते है इस शरीर के सुख के पीछे और शरीर के सुख के पीछे भागने के कारण सुख के बजाय हमें दुःख हीं मिलता है। आप एक बात सोंचो आपको अगर कही जाना हो तो अपने ज़रूरत के सामान को ही बैग में रखोगे, ऐसा तो नहीं की बिना जरुरत की वस्तु आप पैक करोगे उसी तरह हम जब प्रभु के धाम जायेगे तो ये सोना - चाँदी - हिरा - मोती नहीं जायेगा। जायगा तो तुम्हारा सत्कर्म तुम्हारा परोपकार। और अगर तुम संसार के चकाचौंध में फंस गये तो पछताओगे। क्यों की सिर्फ ब्रम्ह सत्य है ये जगत मिथ्या है। एक सुन्दर प्रसंग है जिससे आपको पता चलेगा की मानव की स्थिति आज क्या है :

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एक बार एक व्यक्ति जो नशा करता था उसने एक बार ज्यादा नशा कर लिया और उसे कुछ साफ दिख भी नहीं रहा था। तब उसने सोचा की अगर नशे में खाली हाँथ घर गया तो पत्नी नाराज होगी और अगर कुछ ले के जाऊंगा तो पत्नी माफ़ कर देगी। वो एक मिठाई वाले के दुकान पे गया और बोला की एक किलो मिठाई दो, तो उसने एक किलो मिठाई पैक कर के दे दी। जब उसका मूल्य पूछा तो बताया की पचास पैसा हुआ। क्यों की ये बहुत पहले की बात है और उस समय मिठाई एक किलो मिठाई पचास पैसे में मिलती थी। उस नशा वाले व्यक्ति ने एक रुपया दुकानदार को दिया, दुकानदार ने बोला की भाई मेरे पास छुट्टा नहीं है दो किलो मिठाई ले लो। उसने बोला नहीं एक किलो हीं दो। तब दुकानदार बोला की पचास पैसा कल कर ले लेना और उसे मिठाई दे दी। तब उस नशा वाले व्यक्ति ने सोंचा की इसके मन में जरुर पाप है ये मेरा पैसा रखना चाहता है इस लिए कल पे टाल रहा है। उसने सोचा की कुछ निशानी देख लूँ तो उसने उसके दुकान के दिवार के रंग को देखा और सोंचा ये ठीक है फिर सोचा की नहीं कही रंग बदल दे फिर दुकान का जो नाम था जो बाहर था उसे देखा फिर कहा नहीं ये भी बदल सकता है फिर बर्तनों को देखा फिर सोंचा नहीं ये भी बदल सकता है। तभी उसकी नज़र भैस पर पड़ी जो दुकान के सामने खड़ी थी उसने सोचा ये सबसे अच्छी निशानी है और चला गया। 

कल जब वो आया तो वो भैस एक नाइ की दुकान के सामने खड़ी थी। उसने जा कर नाइ की गर्दन पकड़ ली और बोला की मैं जानता था की तेरे मन में पाप था। मेरे पचास पैसा रखने के लिए तूने धंधा हीं बदल लिया कल मिठाई बेच रहा था आज बाल - दाढ़ी काट रहा है ? नाइ को समझ आया तो उस नशा वाले व्यक्ति ने उसे कल की घटना बताई। तब नाइ ने सर पकड़ लिया और बोला की मेरे भाई ये भैस कल हलवाई के दुकान के सामने खड़ी थी और आज मेरे दुकान के सामन। ये भैस तो चलती रहती है तू इसको निशानी कैसे मान सकता है।"

प्रसंग के अनुसार जैसे उस व्यक्ति ने नशा और अज्ञानता के कारण दिवार के रंग को सोंचा बदल जायेगा, दुकान के बोर्ड जो था उसको सोंचा की रात भर में बदल लेगा। और उस भैस को सोचा की सही है, यही आज के मानव की स्थिति है उसी भैस के सामान ये संसार निरंतर बदल रहा है और हम अटल परमात्मा को मान कर इस संसार के पीछे भागते हैं मरने के बाद एक सुई तक साथ नहीं जाएगी। तुम्हारा अपना शरीर तक नहीं जायेगा, जरा सोंचो जिस! दुनियां के जिस नशे में हो वही नशा आपका नाश कर देगा। ये मानव जन्म बहुत मूल्यवान है और बहुत भाग्य और परमात्मा की कृपा के बाद प्राप्त होता है, और अगर इसे गवां दोगे तो पछताने के सिवा तुम्हारे पास कुछ नहीं होगा। चौरासी लाख योनियों में मनुष्य सबसे श्रेष्ठ है, और इसको खो देने के बाद फिर से कुत्ता, बिल्ली, कीड़ा मकौड़ा और भी अन्य जिव बनना पड़ेगा। और मानव तन को पा कर पाप करोगे तो नर्क भी जाना पड़ेगा। इस लिए तुम्हे मानव जीवन मिला है तो इसका सदुपयोग करों और उस परमात्मा को पाने की कोशिश करो। परमात्मा की ओर से कोई देर नहीं है वो तो बैठा है तुमसे मिलने, वो तो तुम्हारे भीतर है। जिस दिन तुम्हे उसे पाने की सच्ची इच्छा होगी, दिल से पुकारोगे वो तुम्हारे सामने होगा।

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