भगवान विष्णु जी और नारद मुनि जी
एक बार नारद मुनि जी ने भगवान विष्णु जी से पुछा, हे भगवन आप का इस समय सब से
प्रिय भक्त कौन है?, अब विष्णु तो भगवान है, सो झट से समझ गये अपने भक्त नारद मुनि
की बात, और मुस्कुरा कर बोले ! मेरा सब से प्रिय भक्त उस गांव का एक मामुली किसान है,
यह सुन कर नारद मुनि जी थोडा निराश हुये, और फ़िर से एक प्रश्न किया, हे भगवान आप
का बडा भक्त तो मै हूँ, तो फ़िर सब से प्रिय क्यो नही??
भगवान विष्णु जी ने नारद मुनि जी से कहा, इस का जबाब तो तुम खुद ही दोगे, जाओ
एक दिन उस के घर रहो ओर फ़िर सारी बात मुझे बताना,नारद मुनि जी सुबह सवेरे मुंह
अंधेर
उस किसान के घर पहुच गये, देखा अभी अभी किसान जागा है, और उस ने सब से पहले
अपने जानवरो को चारा वगेरा दिया, फ़िर मुंह हाथ धोऎ, देनिक कार्यो से निवर्त हुया, जल्दी
जल्दी भगवान का नाम लिया, रुखी सूखी रोटी खा कर जल्दी जल्दी अपने खेतो पर चला
गया, सारा दिन खेतो मे काम किया और शाम को वापिस घर आया जानवरो को अपनी
अपनी जगह बांधा, उन्हे चारा पानी डाला, हाथ पाँव धोये, कुल्ला किया, फ़िर थोडी देर भगवान
का नाम लिया, फ़िर परिवर के संग बैठ कर खाना खाया, कुछ बाते की और फ़िर सो गया.
अब सारा दिन यह सब देख कर नारद मुनि जी, भगवान विष्णु के पास वापिस आये, और
बोले भगवन मै आज सारा दिन उस किसान के संग रहा, लेकिन वो तो ढंग से आप का नाम
भी नही ले सकता, उस ने थोडी देर सुबह थोडी देर शाम को ओर वो भी जल्दी जल्दी आप का
ध्यान किया, और मैं तो चौबीस घंटे सिर्फ़ आप का ही नाम जपता हुं, क्या अब भी आप का
सबसे प्रिय भक्त वो गरीब किसान ही है, भगवान विष्णु जी ने नारद की बात सुन कर कहा,
अब इस का जबाब भी तुम मुझे खुद ही देना.
और भगवान विष्णु जी ने एक कलश अमृत से भरा नारद मुनि को थमाया, ओर बोले इस
कलश को ले कर तुम तीनो लोको की परिक्रमा कर के आओ, लेकिन ध्यान रहे अगर एक बुंद
भी अमृत नीचे गिरा तो तुम्हारी सारी भक्ति और पुण्य नष्ट हो जायेगे, नारद मुनि तीनो
लोको की परिक्र्मा कर के जब भगवान विष्णु के पास वापिस आये तो , खुश हो कर बोले
भगवान मैंने एक बुंद भी अमृत नीचे नही गिरने दिया, विष्णु भगवान ने पुछा और इस दौरान
तुम ने मेरा नाम कितनी बार लिया?मेरा स्मरण कितनी बार किया ? तो नारद बोले अरे
भगवान जी मेरा तो सारा ध्यान इस अमृत पर था, फ़िर आप का ध्यान केसे करता.
भगवान विष्णु ने कहा, हे नारद देखो उस किसान को वो अपना कर्म करते हुये भी नियमित
रुप से मेरा स्मरण करता है, क्योकि जो अपना कर्म करते हुये भी मेरा जाप करे वो ही मेरा
सब से प्रिय भक्त हुआ, तुम तो सार दिन खाली बैठे ही जप करते हो, और जब तुम्हे कर्म
दिया तो मेरे लिये तुम्हारे पास समय ही नही था, तो नारद मुनि सब समझ गये ओर भगवान
के चरण पकड कर बोले हे भगवन आप ने मेरा अंहकार तोड दिया, आप धन्य है