Monday 9 June 2014

लोक सहित्य में बिग्गाजी

लोक सहित्य में बिग्गाजी 

लोक सहित्य में बिग्गाजी के सम्बन्ध में अनेक दोहे और छंद 

जनमानस मे प्रचलित हैं जिन्से अनेक जानकारी प्राप्त 

होती हैं: 

सौ कोसे रिच्छा करो हिंदवाणी रा सूर  

इगियारी संवतां तणो बरस इक्कीसो साल  

काती मास तिथी तेरसो वार शनिसर वार  

राजा तो रतन सिंघ सिरदार सिंघ राजकंवार  

धरसी बैठा पाठवी भली बताई वार  

बडो भाई सदा सुख पिता नांव श्रीराम  

सिंवर देवी सुळतानवी चंद कयो लछीराम  


                     बिग्गाजी के छंद 

सिंवरू देवी सारदा लुळहर लागूं पाय  

बिगमल हुवो बीकाणगढ सोभा देवूं बताय  

कियो रड़ाको राड़ सूं लेसूं निजपत नांव  

सारद सीस नवाय कर करसूं कथणी काम  

बीदो बीको राजवी गढ बीकाणो गांव  

जूना खेड़ा प्रगट किया इडक बिगो है धाम  

रूघपत कुळ में ऊपन्यो भगीरथ वंश मांय  

मामा गोदारा भीम-सा, नानै चूहड़ का नांव  

रीड़ज गढ रो पाटवी परण्यो माला रै गांव  

धिन कर चाल्यौ सासरै नाईज लिया बुलाय  

कंगर कढाई कोरणी कपड़ा लिया सिलाय  

कचव कंठी सोवणी गळ झगबग मोती झाग  

मीमां जरी जड़ाव की माथै कसूमल पाग  

धिन कर चाल्यो सासरै मात-पिता अरु मेंहद  

कमेत घोड़ी बो धणी बण्यो पून्यूं को चंद  

उठै राठ की हुई चढाई, दिल्ली का तखत हजारो  

क्या मक्का बलखबुखारोचढ्यो राठकर हौकारो  

सिंवर मीर पीर पट्टाण ध्यान मैंमद का धर रे  

किसो मुलक लौ मार किसो अक छोड़ो थिर रे  

कहै राठ इक बात कयो थे हमरो करो  

मार जाट का लोग डेरा जसरसर धरो  

डावी छोड़दो जखड़ायण जींवणी नागौरी गउवों घेरो  

चढ्यो राठ को लोग सुगन ने बोल झडा़ऊ  

पिर्या सिंध सादूल सुगन बै हुया पलाऊ  

              
                श्री बिग्गाजी महाराज की आरती 

जय बिगमल देवा-देवा-जाखड़कुल के सूरज करूं मैं नित सेवा  


जाखड़ वंश उजागर, संतन हित कारी (प्रभु संतन) 

दुष्ट विदारण दु: जन तारण, विप्रन सुखकारी 1  


सत धर्म उजागर सब गुण सागर, मंदन पिता दानी  

सती धर्म निभावण सब गुण पावन, माता सुल्तानी 2  


सुन्दर पग शीश पग सोहे, भाल तिलक रूड़ो देवा-देवा  

भाल विशाल तेज अति भारी, मुख पाना बिड़ो 3  


कानन कुन्डल झिल मिल ज्योति, नेण नेह भर्यो  

गोधन कारन दुष्ट विदारन, जद रण कोप करयो 4  


अंग अंगरखी उज्जवल धोती, मोतीन माल गले  

कटि तलवार हाथ ले सेलो, अरि दल दलन चले 5  


रतन जडित काठी, सजी घोड़ी, आभाबीज जिसी  

हो असवार जगत के कारनै, निस दिन कमर कसी 6  


जब-जब भीड़ पड़ी दुनिया में , तब-तब सहाय करी  

अनन्त बार साचो दे परचो, बहु विध पीड़ हरी 7  


सम्वत दोय सहस के माही, तीस चार गिणियो  

मास आसोज तेरस उजली, मन्दिर रीड़ी बणियो 8  


दूजी धाम बिग्गा में सोहे, धड़ देवल साची  

मास आसोज सुदी तेरस को, मेला रंग राची 9  


या आरती बिगमल देवा की, जो जन नित गावे  

सुख सम्पति मोहन सब पावे, संकट हट जावै 10  
                    
                                                                           












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