Thursday, 5 June 2014

जय बिगमल देवा-देवा-जाखड़ कुल के सूरज करूं मैं नित सेवा Aarti

जय बिगमल देवा-देवा-जाखड़ कुल के सूरज करूं मैं नित सेवा 

जाखड़ वंश उजागरसंतन हित कारी (प्रभु संतन)

दुष्ट विदारण दु: जन तारणविप्रन सुखकारी  1 

सत धर्म उजागर सब गुण सागरमंदन पिता दानी 

सती धर्म निभावण सब गुण पावनमाता सुल्तानी  2 

सुन्दर पग शीश पग सोहेभाल तिलक रूड़ो देवा-देवा 

भाल विशाल तेज अति भारीमुख पाना बिड़ो  3 

कानन कुन्डल झिल मिल ज्योतिनेण नेह भर्यो 

गोधन कारन दुष्ट विदारनजद रण कोप करयो  4 

अंग अंगरखी उज्जवल धोतीमोतीन माल गले 

कटि तलवार हाथ ले सेलोअरि दल दलन चले  5 

रतन जडित काठीसजी घोड़ीआभाबीज जिसी 

हो असवार जगत के कारनैनिस दिन कमर कसी  6 

जब-जब भीड़ पड़ी दुनिया में , तब-तब सहाय करी 

अनन्त बार साचो दे परचोबहु विध पीड़ हरी  7 

सम्वत दोय सहस के माहीतीस चार गिणियो 

मास आसोज तेरस उजलीमन्दिर रीड़ी बणियो  8 

दूजी धाम बिग्गा में सोहेधड़ देवल साची 

मास आसोज सुदी तेरस कोमेला रंग राची  9 

या आरती बिगमल देवा कीजो जन नित गावे 

सुख सम्पति मोहन सब पावेसंकट हट जावै  10 

                               














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