Saturday, 7 June 2014

हिन्दू धर्म के संरक्षक और महान गौरक्षकबिग्गाजी ने बैसाख सुदी तीज को 1336 ई. में गायों की डाकुओं से रक्षा करने में अपने प्राण दांवपरलगा दिये थे

हिन्दू धर्म के संरक्षक और महान गौरक्षकबिग्गाजी ने बैसाख सुदी तीज को 1336 . में

गायों की डाकुओं से रक्षा करने में अपने प्राण दांवपरलगा दिये थे. विक्रम संवत 1393 में 

बिग्गाजी के सालेका विवाह था. ऐसी लोक कथा प्रचलित हैकि बिग्गाजी 1336 . में अपनी 

ससुराल में साले की शादी में गए तब साथ में बागड़वा ढाढी, जाखड़ नाई,

तावणिया ब्राह्मण, कालवा मेघवाल को भी साथ लेगये.रात्रि विश्राम के बाद सुबह खाने के 

समय मिश्रा ब्राहमणों की कुछ औरतें आई और बिग्गाजी सेसहायता की गुहार की. मिश्रा 

ब्राहमणियों ने अपना दुखड़ा सुनाया कि यहाँ के राठ मुसलमानों ने हमारी सारी गायों को 

छीन लिया है. वे उनको लेकर जंगल की और गए हैं. कृपा करके हमारी गायों को छुड़ाओ.

उन्होने कहा कि कोई भी क्षत्रिय रक्षार्थ आगे नहीं आ रहा है. इस बात पर बिग्गाजी का खून 

खोल उथाबिग्गाजी ने कहा "धर्म रक्षक क्षत्रियों को नारी केआंसू देखने की आदत नहीं है

अपने अस्त्र-सस्त्र उठाये और साथी सावलदास पहलवान, हेमा बागडवा ढाढीगुमानाराम 

तावणिया, राधो व बाधो दो बेगारी व अन्य साथियों सहित गायों के रक्षार्थ सफ़ेद घोडी पर

सवार होकर मालासर से रवाना हुये. [9] मालासर वर्तमान में बिकानेर जिले की बिकानेर 

तह्सील में स्थित हैबिग्गाजी अपने लश्कर के साथ गायों को छुडाने के लिए चल पड़े

मालासर से 35 कोस दूर जेतारण (जो अबउजाड़ है) में बिग्गाजी का राठों से मुकाबला हुआ

लुटेरे संख्या में कहीं अधिक थे. दोनों में घोर युद्ध हुआ. यह युद्ध राठों की जोहडी नामक 

स्थान पर हुआकाफी संख्या में राठों के सर काट दिए गए. वहां पर इतना रक्त बहा कि 

धरती खून से लाल हो गई. युद्ध में राठों को पराजित कर सारी गायें वापस ले लीलेकिन एक

बछडे के पीछे रह जने के कारण ज्यों ही बिग्गाजी वापस मुड़े एक राठ ने धोके से आकर 

पीछे  से बिग्गाजी का सर धड़ से अलग कर दिया. [10] राठों के साथ युद्ध की घटना वि.सं

(1336 .) बैसाख सुदी तीज को हुई थी. [11] ऐसी लोक कथा प्रचलित है कि सर के धड़ से 

अलग होने के बाद भी धड़ अपना काम करती रही. दोनों बाजुओं से उसी प्रकार 

हथियार चलते रहे जैसे जीवित के चलते हैंसब राठों को मार कर बिग्गाजी की शीश विहीन

देह ने असीम वेग से ताकत के साथ शस्त्र साफ़ किए. सर विहीन देह के आदेश से गायें 

और घोड़ी वापिस अपने मूल स्थान की और चल पड़े. शहीद बिग्गा जी ने गायों को अपने 

ससुराल पहुँचा दिया तथा फ़िर घोडी बिग्गाजी का शीश लेकर जाखड राज्य की और चल

पड़ी. [12] घोडी जब अपने मुंह में बिग्गा जी का शीश दबाए जाखड राज्य की राजधानी रीडी़ 

पहुँची तो उस घोडी को बिग्गा जी की माता सुल्तानी ने देख लिया तथा घोड़ी को अभिशाप

दिया कि जो घोड़ी अपने मालिक सवार का शीश कटवा देती है तो उसका मुंह नहीं देखना 

चाहिएकुदरत का खेल कि घोडी ने जब यह बात सुनी तो वह वापिस दौड़ने लगी. पहरेदारों 

ने दरवाजा बंद कर दिया था सो घोड़ी ने छलांग लगाई तथा किले की दीवार को फांद लिया

किले के बाहर बनी खई में उस घोड़ी के मुंह से शहीद बिग्गाजी का शीश छुट गया.

जहाँ आज शीश देवली (मन्दिर) बना हुआ है. [13] बिग्गाजी के जुझार होने समाचार 

उनकी 

बहिन हरिया ने सुना तो एक बछड़े सहित सती हो गयीउस

स्थान पर एक चबूतरा आज भी मौजूद है, जो गांव रिड़ी में है. [14] यह स्थान रीड़ी गाँव के 

पश्चिम की और हैजहाँ बिग्गाजी के पुत्रों ओलजी-पालजी ने एक चबूतरा बनवाया जो आज 

भी भग्नावस्था में 'थड़ी' के रूप में मौजूद है और जिसको गाँव के बुजुर्ग लोग हरिया पर

हर देवरा' के रूप में पुकारते हैं. [15] जब घोड़ी शहीद बिग्गाजी का शीश विहीन धड़ ला रही 

थी 

तो उस समय जाखड़ की राजधानी रीडी से पांच कोस दूरी पर थी. यह स्थान रीडी से उत्तर

दिशा में गोमटिया की रोही में है. सारी गायें बिदक गई. ग्वालों ने गायों को रोकने का 

प्रयास किया तो उनमें से एक गाय घोड़ी से टकरा गई तथा खून का छींटा उछला. उसी 

स्थान पर एक गाँव बसाया गया जिसका नाम गोमटिया से बदल कर बिग्गाजी के नाम पर 

बिग्गा रखा गया. जहाँ आज धड़ देवली (मन्दिर) बना हुआ है. यह गाँव आज भी आबादहै


तथा इसमें अधिक संख्या जाखड़ गोत्र के जाटों की हैयह गाँव राष्ट्रीय राजमार्ग पर रतनगढ़ 

डूंगर गढ़ के बीच आबाद है. यहाँ पर बीकानेर दिल्ली की रेलवे लाइन का स्टेशन भी है

गायों की रक्षा करते हुए बिग्गाजी वीर गति को प्राप्त होने के कारण लोगों की आस्था के 

पात्र बन गए. लोगों ने गाँव रीड़ी में जहाँ बिग्गाजी का जन्म स्थान था तथा जहाँ बिग्गाजी 

का शीश गिरा थावहां वि.सं1407 (1350 .) असोज सुदी 13 को एक कच्चा चबूतरा बना 

दिया था और बिग्गाजी की पूजा अर्चना आरंभ कर दी. इसी तरह गाँव

बिग्गा में भी, जहाँ बिग्गाजी की धड़ गिरी थी और जमीन से देवली निकली थी, वहां 'धड 

देवलीस्थापित कर धोक पूजा शुरू की गयी. बाद में वहां वि.सं2025 में आधुनिक मंदिर 

बना दिया और साथ में यात्रियों की सुविधा के लिए धर्मशाला भी बनवा दी गयी. इसी तरह 

रीड़ी में भी बिग्गाजी का वर्तमान मंदिर वि.सं. 2034 असोज सुदी 13 को बना दिया. इसके 

पास ही सं 2006 में 'पीथल माता का मंदिर' भी बना दिया है. इस तरह बिग्गा और रीड़ी

जिनके बीच की दूरी 15 की.मीहैदोनों जगह बिग्गाजी के मंदिर बने हैं. यहाँ घोड़े पर

स्वर बिग्गाजी की मूर्तियाँ लगी हैं.
                                                       
                                          



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