हमारे जीवन के लिए सर्वाधिक महवत्पूर्ण तत्व है पानी। हम कुछ समय भोजन के बिना
तो रह सकता है, लेकिन प्यास लगने के बाद अधिक समय तक पानी के बिना रह पाना
संभव
नहीं है। एक पूरा दिन पानी के बिना गुजारना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन
शास्त्रो के अनुसार वर्ष में एक दिन ऐसा बताया गया है, जब पूरे दिन पानी नहीं पीना चाहिए।
वह खास दिन सोमवार, 9 जून 2014 को आ रहा है।
इस सोमवार निर्जला एकादशी है। वैसे तो हर माह में दो एकादशियां आती हैं, लेकिन हिन्दी
पंचांग के ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी का विशेष महत्व है। इस समय
आने वाली एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस तिथि का संबंध भीम से है।
आमतौर पर एकादशी व्रत के विषय में काफी लोग जानते हैं और कुछ लोग नियमित रूप से
यह व्रत रखते भी हैं। यदि आप भी एकादशी का व्रत करना चाहते हैं, लेकिन कर नहीं पाते हैं
तो सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत करके वर्ष सभी चौबीस एकादशियों का पुण्य लाभ एक
साथ अर्जित कर सकते हैं। इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को पानी भी नहीं पीना चाहिए।
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत का खास महत्व बताया गया है। एक वर्ष में चौबीस एकादशियां
आती हैं और एक माह में दो एकादशियां। हर माह की एकादशी का अलग महत्व है और हर
एकादशी का नाम भी अलग है। अभी ज्येष्ठ मास चल रहा है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में
जो एकादशी आ रही है वह अक्षय पुण्य देने वाली और सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली है।
इसके पुण्य प्रभाव से भगवान विष्णु के साथ ही महालक्ष्मी की भी कृपा प्राप्त होती है।
निर्जला एकादशी की कथा
निर्जला एकादशी से संबंधित एक कथा काफी प्रचलित है। यह कथा महाभारत की है। कथा के अनुसार एक बार जब महर्षि वेदव्यास पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाली एकादशी व्रत का संकल्प करा रहे थे। तब महाबली भीम ने उनसे कहा- पितामाह, आपने प्रति पक्ष (एक माह में दो पक्ष होते हैं। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। यानी एक माह में दो एकादशी आती हैं।) एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं एक दिन तो क्या, एक समय भी बिना भोजन नहीं रह सकता।
भीम ने आगे कहा कि मेरे पेट में वृक नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे दिन में कई बार भोजन करना पड़ता है। क्या अपनी भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊंगा?
भीम के इस प्रश्न के उत्तर में महर्षि ने कहा कि भीम, पूरे वर्ष में सिर्फ एक एकादशी ऐसी है जो वर्षभर की चौबीस एकादशियों का पुण्य दिला सकती है। वह एकादशी है ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी। जो भी व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है उसे एक ही व्रत से सभी एकादशियों के बराबर पुण्य प्राप्त हो जाता है। अत: भीम तुम इस एकादशी का व्रत करो। भीम निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिए सहमत हो गए। इसलिए इसे पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
भीम ने आगे कहा कि मेरे पेट में वृक नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे दिन में कई बार भोजन करना पड़ता है। क्या अपनी भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊंगा?
भीम के इस प्रश्न के उत्तर में महर्षि ने कहा कि भीम, पूरे वर्ष में सिर्फ एक एकादशी ऐसी है जो वर्षभर की चौबीस एकादशियों का पुण्य दिला सकती है। वह एकादशी है ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी। जो भी व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है उसे एक ही व्रत से सभी एकादशियों के बराबर पुण्य प्राप्त हो जाता है। अत: भीम तुम इस एकादशी का व्रत करो। भीम निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिए सहमत हो गए। इसलिए इसे पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
निर्जला एकादशी का व्रत किस प्रकार किया जाना चाहिए यह विधि इस प्रकार है...
इस एकादशी पर जलपान करना वर्जित किया गया है। अत: इस दिन पानी भी नहीं पीना
इस एकादशी पर जलपान करना वर्जित किया गया है। अत: इस दिन पानी भी नहीं पीना
चाहिए। हालांकि, आज के दौर में ऐसा कर पाना काफी मुश्किल है, अत: जब प्यास असहनीय
हो जाए तब दूध पान किया जा सकता है। थोड़ा बहुत फलाहार भी किया जा सकता है। वैसे
इस दिन निर्जल और निराहार रहने पर अधिक पुण्य प्राप्त होता है।इस एकादशी पर निर्जल रहकर उपवास करना होता है, इसी वजह से इस एकादशी का नाम निर्जला एकादशी पड़ा है। यह व्रत अत्यंत कठिन और सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला माना गया है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की पंचोपचार से पूजा करें। इसके पश्चात मन को शांत रखते हुए दिव्य मंत्र 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप करें। शाम को भगवान की पूजा करें व रात में भजन-कीर्तन करते हुए धरती पर विश्राम करें।
निर्जला एकादशी के दूसरे दिन किसी योग्य ब्राह्मण को अपने घर आमंत्रित करें और उसे
भोजन कराएं। इसके बाद जल से भरे कलश के ऊपर सफेद वस्त्र ढंकें और उस पर शक्कर व
दक्षिणा रखें। अब इस कलश का दान ब्राह्मण को कर दें। साथ ही, यथाशक्ति अन्न, वस्त्र,
आसन, जूता, छतरी, पंखा तथा फल आदि का दान करना चाहिए। अंत में स्वयं भोजन करें।
जल कलश का दान- धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने
वालों को वर्ष भर की एकादशियों का फल प्राप्त होता है। हम वर्ष की 23 एकादशियों में
फलाहार और अन्न खाते हैं, इससे दोष उत्पन्न होता है। अत: निर्जला एकादशी का व्रत करने
से अन्य 23 एकादशियों पर अन्न खाने का दोष दूर हो जाता है। इस प्रकार निर्जला एकादशी
का व्रत करने वाला सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार महर्षि व्यास पांडवों के आवास पर पधारे। जब महाबली
भीम ने महर्षि से कहा कि युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी
वर्षभर की एकादशियों का व्रत रखते हैं और मुझे भी व्रत रखने के प्रेरित करते हैं, लेकिन
मैं बिना खाना खाए नहीं रह सकता हूं। महर्षि व्यास जानते थे कि भीम के उदर में वृक
नामक अग्नि है इसलिए वह अधिक मात्रा में
भीम ने महर्षि से कहा कि युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी
वर्षभर की एकादशियों का व्रत रखते हैं और मुझे भी व्रत रखने के प्रेरित करते हैं, लेकिन
मैं बिना खाना खाए नहीं रह सकता हूं। महर्षि व्यास जानते थे कि भीम के उदर में वृक
नामक अग्नि है इसलिए वह अधिक मात्रा में
भोजन करता है। इसी अग्नि के कारण भीम बिना खाना खाए नहीं रह सकता है।
तब महर्षि ने भीम को कहा कि तुम ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी का व्रत करो।
तब महर्षि ने भीम को कहा कि तुम ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी का व्रत करो।
निर्जला एकादशी व्रत में थोड़ा सा पानी पीने से दोष नहीं लगता है। इस व्रत से अन्य 23
एकादशियो का पुण्य भी प्राप्त हो जाता है। भीम ने साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत
किया। परिणामस्वरूप निर्जला एकादशी के अगले दिन सुबह के समय भीम बेहाल हो गए।
तब पांडवों ने गंगाजल, तुलसी, चरणामृत प्रसाद, देकर भीम की मुर्छा दूर की। इसलिए इस
एकादशी को भीमसेन एकादशी भी कहते कहा जाता है।
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