Thursday 10 April 2014

विष्णु पूजा के इन खास उपायों से लक्ष्मी होंगी प्रसन्न, कर देंगी खुशहाल

कल विष्णु पूजा के ये छोटे-छोटे उपाय भी कर देंगे खुशहाल

इंसान जीवन में पैसा कमाने के लिए ही काम नहीं करता, बल्कि उसके साथ यश या नाम पाने की भी चाहत मन में रखता है। यानी सुकून से जीने के लिए सुख के साथ सम्मान मिलना भी बहुत अहमियत रखता है। धर्मशास्त्रों के मुताबिक ऐसी इच्छाओं को पूरा करने के लिए बेहद जरूरी है- पुरुषार्थ यानी आसान शब्दों में समझें तो मेहनत सेवा की भावना।

हिन्दू धर्म में इस तरह आगे बढ़ने के लिए ही धार्मिक उपाय अपनाना भी शुभ फलदायी माने गए हैं। इनमें भगवान विष्णु की उपासना भी असरदार मानी जाती है। आस्था है कि जीवन में पुरुषार्थ की प्रेरणा ऊर्जा भगवाव विष्णु की भक्ति से मिलती है। भगवान विष्णु की उपासना की विशेष घड़ी एकादशी तिथि है।

शास्त्रों में खासतौर पर विष्णु उपासना के विशेष दिन एकादशी (11 अप्रैल) के लिए ऐसे मंत्र पूजा उपाय भी बताए गए हैं, जिनका ध्यान मानसिक पवित्रता देने वाला माना गया है। इससे मन-मस्तिष्क द्वेष, कलह, क्रोध आदि दोषों से मुक्त रहते है। मान्यता है कि ऐसे व्यक्ति और स्थान पर ही विष्णुपत्नी महालक्ष्मी की भी कृपा बरसती हैं। खासकर वे लोग जो पूजा-पाठ के लंबे विधान नहीं जानते या व्यस्त रहते हैं, कुछ आसान विष्णु पूजा उपाय मंत्र से भी सुख सुकून की हर चाहत पूरी कर सकते हैं। 

हिन्दू पंचांग के मुताबिक 11 अप्रैल को चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी कामदा एकादशी पर अगली स्लाइड पर बताए जा रहे जगतपालक भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के उपाय खुशहाली की चाहत रखने वाले किसी भी विष्णु भक्त को नहीं चूकना चाहिए



                             कल विष्णु पूजा के इन खास उपायों से लक्ष्मी होंगी प्रसन्न, कर देंगी खुशहाल

भगवान विष्णु की प्रतिमा को केसर मिले दूध से स्नान कराएं। संभव हो तो शुद्ध पवित्र जल या गंगाजल से स्नान के बाद पीला चंदन, सुंगधित फूल, इत्र, पीताम्बरी वस्त्र, दूध घी की मिठाई का भोग लगाएं। 

- पूजा के बाद चंदन धूप गोघृत का दीप लगाकर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख कर, पीले आसन या कुश के आसन पर बैठ तुलसी के दानों की माला से विष्णु के स्वरूप की महिमा प्रकट करते नीचे लिखे मंत्र का स्मरण यथासंभव 108 या विषम संख्याओं जैसे 11, 21 बार मानसिक शक्ति बल की कामना से करें

अतिनीलघनश्यामं नलिनायतलोचनम्।
स्मरामि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम्।। 

इसका अर्थ है कि गहरे नीले बादलों जैसे श्याम रंग वाले और कमल के फूल की तरह सुंदर नेत्र वाले भगवान विष्णु के ध्यान से ही मैं स्नान करने के समान पवित्र हो गया हूं। 

- मंत्र स्मरण पूजा के बाद भगवान विष्णु की आरती कर, दीपज्योति, प्रसाद ग्रहण कर साष्टांग प्रणाम करें। यह क्रिया अहंकार का अंत करने वाली भी मानी गई है, जो कलह का कारण होती है।


                                 कल विष्णु पूजा के इन खास उपायों से लक्ष्मी होंगी प्रसन्न, कर देंगी खुशहाल

हिन्दू धर्म में देव पूजा के जरिए सांसारिक जीवन में हर तरह से पावनता, शांति, ज्ञान, प्रेम, सुख, आनंद, धैर्य, ऊर्जा, बल, समृद्धि, ऐश्वर्य सहित सभी शुभ मंगल भावों से जुड़ी कामनासिद्धि के लिए भगवान विष्णु का स्मरण मात्र ही श्रेष्ठ उपाय माना गया है। पौराणिक मान्यताओं में त्रिदेवों में एक जगतपालक भगवान विष्णु को ऐसे ही सत्व गुणों का स्वामी बताया गया है।

यहां बताए जा रहे विशेष विष्णु मंत्र उपाय सभी सुखों को देने के साथ पद, प्रतिष्ठा की कामना को खासतौर पर जल्द पूरा करने वाले होंगे -

धनकामना पूरी करने महालक्ष्मी कृपा करने वाला विष्णु मंत्र

पद्मनाभोरविन्दाक्ष: पद्मगर्भ: शरीरभूत्।
महद्धिर्ऋद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुडध्वज:।।
अतुल: शरभो भीम: समयज्ञो हविर्हरि:
सर्वलक्षणलक्षण्यो लक्ष्मीवान् समितिञ्जय:।।


                                  कल विष्णु पूजा के इन खास उपायों से लक्ष्मी होंगी प्रसन्न, कर देंगी खुशहाल

आज के दौर में तो कार्य लक्ष्य को नियत समय में पूरा करने मनचाहे नतीजों को पाने का दबाव या तनाव दिमाग पर हावी रहता है, जिससे कई मौकों पर काम से जुड़ी कई उलझनें दिमाग को अस्थिर अशांत भी करती हैं। मन-मस्तिष्क को ऐसी दशा से बचाने के लिए शास्त्रों में बताया एक विष्णु मंत्र बड़ा ही असरदार माना गया है।

भगवान विष्णु की महिमा में शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि विष्णु जगत को पालने वाले ही नहीं है, बल्कि स्वयं दृष्टि और दृश्य भी हैं। यही कारण है कार्यक्षेत्र में कार्य से जुड़ी किसी भी उलझन को सुलझाने के लिए शुद्ध भाव और चिंतन से नीचे लिखे विष्णु मंत्र को मन ही मन ऑफिस में बोलना भी बेहतर नतीजे देने वाला साबित होता है। इसमें भगवान विष्णु के नाम स्वरूप का स्मरण हैं-
 
सत्यस्थ: सत्यसङ्कल्प: सत्यवित् सत्यत्प्रदस्तथा।
धर्मो धर्मी कर्मी सर्वकर्मविवर्जित:।।
कर्मकर्ता कर्मैव क्रिया कार्यं तथैव च।
श्रीपतिर्नृपति: श्रीमान् सर्वस्य पतिरूर्जित:।। 

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