Thursday 10 April 2014

आपकी नौकरी कैसी भी हो, ये नीति ध्यान रखेंगे तो जरूर मिलेगा प्रमोशन

आपकी नौकरी कैसी भी हो, ये नीति ध्यान रखेंगे तो जरूर मिलेगा प्रमोशन

वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत ग्रंथ में दिए गए सूत्र और प्रसंग आज भी श्रेष्ठ जीवन के लिए प्रेरणा देते हैं। महाभारत में कई महान पात्र हैं, इन महान पात्रों में एक पात्र ऐसा है जो दासी का पुत्र था। दासी पुत्र होते हुए भी महाभारत में इस पात्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह दासी पुत्र है कौरवों के महामंत्री विदुर।
विदुर एक दासी के पुत्र थे, लेकिन उन्होंने अपनी नीतियों के बल पर इतिहास में श्रेष्ठ स्थान हासिल किया है। महामंत्री विदुर ने विदुर नीति नामक एक ग्रंथ की रचना भी की है। इस ग्रंथ में दी गई नीतियां आज भी हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं। यहां जानिए विदुर नीति की कुछ खास नीतियां...
विदुर कहते हैं कि
भूयांसं लभते क्लेशं गौर्भवति दुर्दहा।
अथ या सुदुहा राजन् नैव ता वितुदन्यापि।।
इस श्लोक में विदुर कहते हैं कि जो गाय अपने मालिक को परेशान करते हुए दूध देती है, उसे बहुत से कष्ट सहन करना पड़ते हैं। मालिक उसे पीटता भी है, समय पर खाने के लिए घास भी नहीं देता। जबकि जो गाय आसानी से मालिक को दूध प्रदान कर देती है, उसे किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होती है।
इस नीति का यही अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने मालिक या स्वामी या प्रबंधक या वरिष्ठजनों के आदेश का पालन तुरंत कर लेता है, उसे किसी भी प्रकार की प्रताड़ना सहन नहीं करनी पड़ती है। समय-समय पर उचित प्रमोशन और प्रोत्साहन मिलता रहता है। जबकि जो लोग अपने प्रबंधक के आदेशों की अवहेलना करते हैं, ठीक से काम नहीं करते, उन्हें तरह-तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।


प्रायेण श्रीमतां लोके भोक्तुं शक्तिर्न विद्यते।
जीर्यन्त्यपि हि काष्ठानि दरिद्राणां महीपते।।
इस श्लोक का अर्थ यह है कि धनी लोगों के पास सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं होती हैं, लेकिन उनकी पाचन शक्ति अधिक अच्छी नहीं होती है। इसी वजह से उन्हें स्वादिष्ट और शुद्ध भोजन पचाने के लिए भी तरह-तरह के प्रयत्न करने होते हैं। पाचन ठीक होने से मोटापा, कब्ज, गैस जैसी परेशानियां सदैव बनी रहती हैं। जबकि जो लोग गरीब होते हैं उनके पेट में तो लकड़ी भी पच जाती है। गरीब व्यक्ति चाहे जैसा भोजन कर ले, वह अपनी मेहनत से उसे पचा लेता है। गरीब व्यक्ति की पाचन शक्ति बहुत अच्छी होती है।

संतापाद् भ्रश्यते रूपं, संतापाद् भ्रश्यते बलम्।
संतापाद् भ्रश्यते ज्ञानं, संतापाद् व्याधिमृच्छति।।
इस श्लोक में विदुर कहते हैं कि यदि किसी व्यक्ति को कोई संताप यानी पीड़ा या दुख है और उसका निवारण नहीं किया जाता है तो वह संताप व्यक्ति के रूप-रंग का नाश कर देता है। व्यक्ति कितना भी सुंदर हो, लेकिन संताप सुंदरता का हरण कर लेता है। संताप से व्यक्ति की शक्ति क्षीण हो जाती है, वह निर्बल हो जाता है।
यदि किसी ज्ञानी व्यक्ति को कोई संताप है तो उसका ज्ञान भी नष्ट हो जाता है। संताप का उचित निराकरण नहीं किया जाए तो व्यक्ति रोगी हो जाता है। अत: यदि हमें किसी प्रकार की मानसिक या शारीरिक पीड़ा हो तो उसका निराकरण कर लेना चाहिए।

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