Wednesday 23 April 2014

गौ-माता की व्यथा

गौ-माता की व्यथा.....

दाँतों तले तृण दाब कर है , दीन गायें कह रही ,

हम पशु तथा तुम हो मनुज ,पर योग्य क्या तुमको यही ?

हमने तुम्हें माँ की तरह ,दूध पीने को दिया ,

देकर कसाई को हमें ,तुमने हमारा वध किया

क्या वश हमारा है भला, हम दीन हैं , बलहीन हैं ,

मारो कि पालो कुछ करो तुम, हम सदैव आधीन हैं

प्रभु के यहाँ से भी कदाचित ,आज हम असहाय हैं ,
इससे अधिक अब क्या कहें ,हाँ ! हम तुम्हारी गाय हैं ।।
जारी रहा क्रम यदि यहाँ ,यूं ही हमारे नाश का
तो अस्त समझो सूर्य भारत भाग्य के आकाश का
जो तनिक हरियाली रही, वह भी रहने पायेगी ,
यह स्वर्ग भारत भूमि बस ,मरघट मही बन जाएगी
बस दु: से एक प्रार्थना गौमाता से.....................
हे गौमात:! मुझे क्षमा करना| मैं क्षमा के योग्य तो नहीं,
परन्तु मुझे क्षमा करना क्योंकि तुम मेरी माता हो| और
तुम सदा ही क्षमाशील हो|
हे गौमात:! मुझे क्षमा करना| मैंने इतनी शारीरिक और
मानसिक शक्ति और धैर्य अर्जित नहीं किया की मैं
तुम्हारी हत्या पूर्णत: रोक सकूँ, तुम्हारी हत्याओं के लिए
संवैधानिक दंड निर्धारित कर सकूँ|
हे गौमात:! मुझे क्षमा करना| मैंने अपना जीवन मनोरंजन
में गवायाँ| तुझे वह काट रहें थे, और मुझे मेरे मनोरंजन
की चिंता थी|
हे गौमात:! मुझे क्षमा करना| मैंने अनजाने में
राष्ट्रद्रोहियों, संस्कृतिद्रोहियों की भावनाओं
की चिंता की पर तेरी पीड़ा को जानने का प्रयत्न
नहीं किया|
हे गौमात:! मुझे क्षमा करना| मेरा जीवन आज व्यर्थ लग
रहा है, मैंने तुम्हारी हत्या का दृश्य देख लिया, सह
भी लिया, और मुझे क्रोध भी नहीं आया|
हे गौमात:! मुझे क्षमा करना| हे गौमात:! मुझे
क्षमा करना

No comments:

Post a Comment