Tuesday 29 April 2014

पालक मानव के लिए बेहद उपयोगी है

पालक
पालक मानव के लिए बेहद उपयोगी है। पालक को आमतौर पर केवल हिमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए गुणकारी सब्जी माना जाता है।
बहुत कम लोग जानते हैं कि पालक में इसके अलावा और भी कई गुण है जिनसे सामान्य लोग अनजान है। तो आइए हम आपको पालक के कुछ ऐसे ही अद्भूत गुणों से अवगत करवाते हैं उसके पश्चात आप जान सकेंगे कि आप पालक क्यों खायें ?
पालक में पाये जाने वाले विभिन्न तत्व- 100 ग्राम पालक में 26 किलो कैलोरी उर्जा ,प्रोटीन 2 % ,कार्बोहाइड्रेट 2.9 %, नमी 92 % वसा 0.7 %, रेशा 0.6 % ,खनिज लवन 0.7 % और रेशा 0.6 % होता हैं। पालक में विभिन्न खनिज लवण जैसे कैल्सियम, मैग्नीशियम ,लौह, तथा विटामिन , बी, सी आदि प्रचुर मात्रा में पाया जाते हैं।
इसके अतिरिक्त यह रेशेयुक्त, जस्तायुक्त होता है।
इन्हीं गुणों के कारण इसे जीवन रक्षक भोजन भी कहा जाता हैं।
पालक में पाये जाने वाले गुण- पालक खाने से हिमोग्लोबिन बढ़ता है। खून की कमी से पीड़ित व्यक्तियों को पालक खाने से काफी फायदा पहुंचता है।
गर्भवती स्त्रियों में फोलिक अम्ल की कमी को दूर करने के लिए पालक का सेवन लाभदायक होता है।
पालक में पाया जाने वाला कैल्शियम बढ़ते बच्चों, बूढ़े व्यक्तियों और गर्भवती स्त्रियों स्तनपान कराने वाली स्त्रियों के लिए वह बहुत फायदेमंद है।
इसके नियमित सेवन से याददाश्त भी मजबूत होती है। शरीर बनाएं मजबूत- पालक में मौजूद फ्लेवोनोइड्स एंटीआक्सीडेंट का काम करता हैं जो रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करने के अलावा हृदय संबंधी बीमारियों से लड़ने में भी मददगार होता है।
सलाद में इसके सेवन से पाचनतंत्र मजबूत होता है। इसमें पाया जाने वाला बीटा कैरोटिन और विटामिन सी क्षय होने से बचाता है।
ये शरीर के जोड़ों में होने वाली बीमारी जैसे आर्थराइटिस, ओस्टियोपोरोसिस की भी संभावना को घटाता है।
आंखों के लिये लाभकारी- पालक आंखो के लिए काफी अच्छी होती है। यह त्वचा को रूखे होने से बचाता है।
बाल गिरने से रोकने के लिए रोज पालक खाना चाहिए। पालक के पेस्ट को चेहरे पर लगाने से चेहरे से झाइयां दूर हो जाती है।
पालक कब खायें? पालक वायुकारक होती है अतः वर्षा ऋतु में इसका सेवन करें




गौएँ प्राणियों का आधार तथा कल्याण की निधि है भूत और भविष्य गौओं के ही हाथ में है वे ही सदा रहने वाली पुष्टिका कारण तथा लक्ष्मी की जड हैं गौओं की सेवा में जो कुछ दिया जाता है, उसका फल अक्षय होता है अन्न गौओं से उत्पन्न होता है, देवताओं को उत्तम हविष्य (घृत) गौएँ देती है तथा स्वाहाकार (देवयज्ञ) और वषटकार (इन्द्रयाग) भी सदा गौओं पर ही अवलंबित है गौएँ ही यज्ञ का फल देने वाली है उन्हीं में यज्ञौ की प्रतिष्ठा है  ऋषियों को प्रात:काल और सांयकाल में होम के समय गौएँ ही हवंन के योग्य घृत आदि पदार्थ देती है जो लोग दूध देने वाली गौ का दान करते है, वे अपने समस्त संकटों और पाप से पार हो जाते है जिनके पास दस गायें हो वह एक गौ का दान करे,जो सौ गाये रखता हो, वह दस गौ का दान करे और जिसके पास हज़ार गौएँ मौजूद हो, वह सौ गाये दान करे तो इन सबको बराबर ही फल मिलता है
जो सौ गौओं का स्वामी होकर भी अग्निहोत्र नहीं करता, यो हज़ार गौएँ रखकर भी यज्ञ नहीं करता तथा जो धनी होकर भी कंजूसी नहीं छोड़ता-ये तीनो मनुष्य अर्घ्य (सम्मान) पाने के अधिकारी नही है
प्रात:काल और सांयकाल में प्रतिदिन गौओं को प्रणाम करना चाहिये इससे मनुष्य के शरीर और बल की पुष्टि होती है गोमूत्र और गोबर देखर कभी घ्रणा करे गौओं के गुणों का कीर्तन करे कभी उसका अपमान करे यदि बुरे स्वप्न दीखायी दे तो गोमाता का नाम ले प्रतिदिन शरीर में गोबर लगा के स्नान करे सूखे हुए गोबर पर बैठे उस पर थूक फेकें मल-मूत्र त्यागे गौओं के तिरस्कार से बचता रहे अग्नि में गाय के घृत का हवन करे, उसीसे स्वस्तिवाचन करावे गो-घृत का दान और स्वयं भी उसका भक्षण करे तो गौओं की वृद्धि होती हैं (महा० अनु० ७८ ।५-२१) .......शेष अगले ब्लॉग में.
श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!


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