व्यावहारिक ज़िंदगी के नजरिए से गृहस्थी तालमेल की ऐसी कला व गुण के तौर पर भी देखी
जाती है, जिसमें अलग-अलग स्वभाव, आदतों, रुचियों, संस्कारों व विचारों के स्त्री-पुरुष
आपस में बेहतर गठजोड़ व संतुलन बनाकर कई अहम लक्ष्यों को साधते हैं।
शास्त्रों के मुताबिक गृहस्थी का केन्द्र स्त्री ही होती है, इसलिए खासतौर पर स्त्री का अच्छा-
बुरा आचरण भी घर-परिवार का सौभाग्य या दुर्भाग्य नियत करता है। चूंकि गृहस्थ जीवन के
दौरान कई कामों में पुरुष के साथ स्त्री की भी अहमियत होती है। यही वजह है कि धर्मशास्त्रों
में स्त्री के लिए ऐसे दो काम भी बेहद जरूरी बताए गए हैं, जो शारीरिक सुंदरता से भी ज्यादा
पति को सुकून और भरोसा देते हैं। धर्म की नजर से इनके बिना गृहस्थ जीवन की सफलता
के
लिए जरूरी त्रिवर्ग यानी धर्म, अर्थ व काम को पाना मुश्किल है। अगली तस्वीर पर क्लिक
कर
जानिए, कौन से हैं स्त्री के ये दो काम-
हिन्दू
धर्मशास्त्र का सूत्र है
कि-
तासां
त्रिवर्गसंसिद्धौ प्रदिष्टं कारणद्वयम्।
भर्तुर्यदनुकूलत्वं यच्च
शीलमविप्लुतम्।।
न तथा यौवनं लोके
नापि रूपं न भूषणम्।
यथा
प्रियानुकूलत्वं सिद्धं शश्वदनौषधम्।।
सरल
शब्दों में अर्थ
है विवाहित स्त्री
गृहस्थी में दो कामों
से न चूके-
पहला हर तरह
से पति को
खुश रखें और
दूसरा हर तरह
से पवित्र रहे।
पहले
काम पर गौर
करें तो पति
की इच्छा के
मुताबिक चलने से पति
का भाव व प्रेम स्त्री के
लिए इतना गहरा
बना रहता है
कि जो रंग-रूप, यौवन और
गहनों से लदे
शरीर को देखकर
भी नहीं पैदा
होता।
ऐसा
कर कोई भी
सौंदर्यहीन स्त्री भी पति
को प्रिय हो
सकती है, वहीं
युवा और सुंदर
होने पर भी
पति के खिलाफ
जाने वाले वाली
स्त्री, पति से
दुराव होने से
दु:खी हो
जाती है।
इसी
तरह दूसरी बात
यह कि स्त्री
अपने तन व विचार से लेकर
संपूर्ण चरित्र को गहना
मानकर उसकी चमक
व पवित्रता बनाए
रखे, क्योंकि घर-परिवार, कुल की
प्रतिष्ठा के लिए कुलीन
स्त्री बुरी संगति,
काम या मनमाने
तरीके से किसी
जगह पर उठना-बैठना या आना-जाना कर अनचाहे
कलंक या दोष
से बचे और
माता व पिता
के कुल के
साथ ही संतान
को भी विवाद
व कलंक लगने
से बचाए।
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