आज भारत वर्ष मे ही करोड़ों लोग सुबह – शाम देवालयों मे माथा टेक कर भगवान से
मनोकामनाएँ मांगते है, पर इन मे से लाखों लोगो को यह तक भी मालूम नहीं है की जिस
देवता से वे याचना कर रहे है उन्हें कुछ भी दे देने की शक्ति तभी आएगी जब हवन द्वारा
अग्नि के मुख से देवताओं तक शुद्ध गौ घृत पहुंचेगा | जब हम हवन में गाय के घी से मिश्रित
चरू देवताओं को अर्पण करते है | उस उत्तम हविष्य से देवता बलिष्ट एवं पुष्ट होते है | जब
देवता शक्तिशाली होगा तभी अपनी शक्ती के बल पर आपकी-हमारी मनोकामनाएं पूरी
करने
मे समर्थ होंगे | पर जब गौवंश ही नहीं रहेगा तो शुद्ध गौ घृत कहा से आएगा? और शुद्ध गौ
घृत
नहीं होगा तो हवन कहा से होगा? और हवन नहीं होंगे तो देवता पुष्ट कैसे होंगे? और देवता
पुष्ट नहीं होंगे तो शक्तिहीन देवता मनोकामनाएं पूर्ण कैसे करेँगे ? आज हम लोग पेड़ लगा
देते है पानी खाद नहीं डालेंगे तो फल कहा से लगेंगे? यह प्रकृति के नियम के विरुद्ध है |
आज जितने भी कथाएं होती है, यज्ञ, अनुष्टान होते हैं, जप-तप होते है उनमें नाम-जप का
कुछ प्रभाव पड़ता हो पर अंत मे जो यज्ञ होता है वह सफल कितने होते है यह राम को ही
मालूम | क्योंकि इन यज्ञों मे शुद्ध गौ घृत का उपयोग नहीं के बराबर होता है | आज भारत वर्ष
मे पूर्व की अपेक्षा यज्ञ, धर्म, कर्म अधिक हो रहे है पर फल नहीं मिलता, यज्ञ सफल नहीं होते,
क्या कारण है? इसके मूल मे यही है की जिस धरती पर गौ, ब्राहमण, साधू-संत, स्त्री दुखी
होते है वहां पर पुण्य कर्म फल नहीं देते |
गोवत्स राधेश्याम रावोरिया
No comments:
Post a Comment