दौलतवाला होने पर ही ऊँचा आसन मिलता न जहाँ I
हर एक ग़रीब आदमी से नफरत अमीर करता न जहाँ II
रहता है सच्चा न्याय जहाँ गुण जहाँ , बल जहाँ नेम जहाँ I
हे विश्वम्भर , बस वहीँ रहो हो अखिल विश्व का प्रेम जहाँ II
परधन मिट्टी के सदृश जहाँ परनारी मात सामान जहाँ I
भगवान विराजें उसी जगह हो नित्य बड़ों का मान जहाँ II
संतोष जहाँ, विश्वास जहाँ, शुचि निष्ठा जहाँ प्रितिति जहाँ I
प्रभु वहीँ रहें है निति जहाँ प्रभु वहीँ रहें है प्रीति जहाँ II
जिस जनकी आस तुम्हीं तुमहो,जिस जनकी टेक तुम्हीं तुम हो I
उसकी आँखों में वास करो, जिस के बस एक तुम्हीं तुम हो II
इस प्रकार कहते हुए , पुलकि उठे मुनिनाथ I
हृदय लगाया राम को बढ़ा प्रेम से हाथ II
कुछ क्षण के उपरांत फिर-बोले मुनि धर धीर I
"अब कहता हूँ आपसे उचित ठांव रघुवीर II
सर्वग्य राम बनकर अजान , जब धाम पूछने आए थे I
तो मैंने भी कविता द्वारा बहुतेर घर दिखलाये थे II
अब सुनो निकट है चित्रकूट , कुछ शोक न द्वन्द्व न त्रास वहां I
है जगन्निवास, उचित हो तो - करिए कुछ काल निवास वहां II
चित्रकूट में बन गया - सुंदर पर्ण निकेत I
ठहर गए रघुवंशमणि - सीता लषण समेत II
उसकी आँखों में वास करो, जिस के बस एक तुम्हीं तुम हो II
इस प्रकार कहते हुए , पुलकि उठे मुनिनाथ I
हृदय लगाया राम को बढ़ा प्रेम से हाथ II
कुछ क्षण के उपरांत फिर-बोले मुनि धर धीर I
"अब कहता हूँ आपसे उचित ठांव रघुवीर II
सर्वग्य राम बनकर अजान , जब धाम पूछने आए थे I
तो मैंने भी कविता द्वारा बहुतेर घर दिखलाये थे II
अब सुनो निकट है चित्रकूट , कुछ शोक न द्वन्द्व न त्रास वहां I
है जगन्निवास, उचित हो तो - करिए कुछ काल निवास वहां II
चित्रकूट में बन गया - सुंदर पर्ण निकेत I
ठहर गए रघुवंशमणि - सीता लषण समेत II
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