आज की तेज रफ्तार के जीवन में जरूरतों और जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए घर से बाहर निकल कामकाजी दुनियां में स्त्रियों ने भी पुरूषों के बराबर तरक्की और सम्मान पाया है। दूसरी ओर भौतिक सुख-सुविधाओं की चकाचौंध से स्त्री-पुरूष दोनों प्रभावित भी हैं। इन स्थितियों से पैदा हो रही प्रतियोगिता की भावना से कई अवसरों पर स्त्री-पुरूष के संबंधों में मर्यादाएं और गरिमा टूटने से समाज में कलह और अशांति भी नजर आती है।
खास तौर पर स्त्रियों के साथ होने वाले अपराध स्त्री के सम्मान को ही नहीं, पूरे समाज को आहत करता है। स्त्रियों को ऐसी बुरी बातों व हालातों से बचाने के लिए युगों से हिन्दू धर्मशास्त्र कई सूत्र उजागर करते आए हैं, क्योंकि धर्म के नजरिए से लज्जा ही स्त्री का आभूषण है, जिसकी रक्षा करना स्वयं स्त्री का भी धर्म है। इसलिए जरूरी माना गया है कि स्त्री स्वयं भी जीवनशैली में खान-पान या रहन-सहन सहित जीवन से जुड़़े हर विषय को लेकर सचेत रहे।
हिन्दू धर्मग्रंथों के मुताबिक हर स्त्री को यहां बताए जा रहे कुछ खास कामों से आज के दौर में भी हरसंभव बचने की कोशिश करे, तो उसकी जीवन को सफल, सुखी व सौभाग्यशाली बनाने की ख़्वाहिशें पूरी करना आसान हो जाता है। जानिए किन बातों से स्त्री को यथासंभव दूर रहना चाहिए-
- दरिद्रता
- दुर्जनों का संग
- ज्यादा श्रृंगार
- मदिरापान यानी शराब और नशीले पदार्थों का सेवन
- मांसाहार या न खाने योग्य भोजन
- अकर्मण्यता या कामचोरी
- दुष्ट स्त्रियों का संग
- पति से अलगाव
- कटु व्यवहार और बोल
- परपुरूषों से ज्यादा बातचीत
- अति कठोर या अति नरम व्यवहार
- दुस्साहस
- ईर्ष्या
- कुटिलता
- किसी अन्य स्त्री का कहा मानना यानी उसके वशीभूत हो जाना।
- गोष्ठी (आज के संदर्भ में उत्सव या समारोह में शामिल होने की अति रुचि)
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