Thursday, 10 April 2014

कैसे खूब बढ़ाएं दौलत और ताकत, जानिए महाभारत के 2 उपाय

कैसे खूब बढ़ाएं दौलत और ताकत, जानिए महाभारत के 2 उपाय

धर्मशास्त्रों के मुताबिक जीवन में हर सुख को पाने में चाहे वह धन ही क्यों हो? ज्ञान, गुण शक्ति निर्णायक होते हैं, किंतु अक्सर यह भी देखा जाता है कि कई लोग ज्ञान योग्यता के अभाव में भी धनवान होने का सुख उठाते हैं। दरअसल, धर्म को साधने का जरिया भी बताए गए अर्थ की कामना यानी भोगने लायक विषय, वस्तु या साधन की चाहत छोटे-बड़े रूप में हर इंसान करता है। यही वजह है कि व्यावहारिक तौर पर भी अर्थ सुख में भी हर किसी इंसान की धन बटोरना ही सबसे बड़ी प्राथमिकता होती है।
 

ऐसी स्थिति काबिल लोगों के मन में यह विचार भी पैदा करती है कि क्या धन कमाने के लिए ज्ञान योग्यता निरर्थक है या फिर वे धनी होना भाग्यवाद से जोड़कर अकर्मण्यता की सोच को भी पोषित करती हैं। जबकि शास्त्रों की कुछ बातों पर गौर करें, तो लक्ष्मी का अधिकारी यानी धनवान सुखी बनने के लिए विचार और कर्म से जुड़ी कुछ खास बातें भी अहम होती है, जिनको अपनाकर ज्ञानी हो या अल्प ज्ञानी दोनों ही धनवान बनने के पात्र बन सकते हैं। 


                                  कैसे खूब बढ़ाएं दौलत और ताकत, जानिए महाभारत के 2 उपाय

 हिन्दू धर्मग्रंथ महाभारत में लिखा है कि

संनियच्छति यो वेगमुत्थितं क्रोध हर्षयो:
श्रियो भाजनं राजन् यश्चापत्सु मुह्यति।। 

इस श्लोक का मतलब है कि जो व्यक्ति क्रोध और हर्ष के प्रवाह को रोक ले और संकट में भी संयम और धैर्य नहीं छोड़ता वह राजलक्ष्मी यानी शक्ति के साथ भरपूर धन, वैभव और ऐश्वर्य प्राप्त करता है। 

इसमें व्यावहारिक जीवन के लिए संकेत साफ है कि क्रोधी स्वभाव व्यक्गित रूप से मानसिक व्यावहारिक दोष के साथ दूसरों की उपेक्षा, असहयोग का कारण बनता है। इसी तरह खुशियों के मौके पर बोल या व्यवहार में संयम होने पर अहं पैदा हो सकता है। वहीं विपत्ति खासकर आर्थिक संकट में मनोबल टूटना कर्म से दूर ले जाकर भारी हानि का कारण बन सकता है।
 
इन बातों में संदेश यही है कि क्रोध, अहंकार से दूर और पक्के इरादों हौंसलें वाला इंसान कहीं भी सत्ता के साथ आर्थिक सुख कई तरह की शक्तियां आसानी से प्राप्त कर सकता है।

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