भगवान विष्णु जगतपालक के रूप में पूजनीय है। दरअसल, विष्णु का स्वरूप, चरित्र व गुण जिम्मेदारियों को उठाने व सफलतापूर्वक पूरा करने की प्रेरणा देते हैं।
शेषशायी भगवान विष्णु के स्वरूप पर भी गौर करें तो जहां वे तामस रूप शेषनाग पर शयन करते हैं, तो वहीं उनकी नाभि से प्रकट हुए रजोगुणी स्वरूप ब्रह्मदेव के दर्शन होते हैं। स्वयं विष्णु सत् गुणी व पालक स्वरूप हैं। इस तरह यह तामसी व राजसी वृत्तियों पर सत् गुणों से संतुलन व नियंत्रण की सीख है।
इसी से प्रेरणा लेकर व्यावहारिक जीवन में भी घर या नौकरी के दायित्वों को पूरा करने के लिए व्यक्ति, वक्त, स्थिति व पद के मुताबिक स्वभाव व व्यवहार को ढालकर कर हर काम में सुख-सफलता पाना संभव बनाया जा सकता है।
शास्त्र कहते हैं कि जहां भगवान विष्णु की कृपा होती है, वहां लक्ष्मी भी वास करने लगती है। ऐसी ही भावना से विष्णु उपासना की शुभ तिथि पूर्णिमा (14 अप्रैल) के शुभ योग में भगवान विष्णु की पूजा कर नीचे लिखा यह विष्णु मंत्र बोलें-
- स्नान के बाद यथासंभव पीले वस्त्र पहनें। पीले आसन पर बैठ भगवान विष्णु की प्रतिमा को पवित्र जल या पंचामृत से स्नान कराने के बाद पीला चंदन, पीले फूल, पीले रेशमी वस्त्र, पीले रंग की मिठाई, दूध या मक्खन से बनी मिठाई का भोग लगाकर पूजा करें। नीचे लिखे मंत्र का स्मरण कर चंदन धूप व गाय के घी का दीप लगा आरती करें व सफल व यशस्वी जीवन की कामना करें -
भक्तस्तुतो भक्तपर: कीर्तिद: कीर्तिवर्धन:।
कीर्तिर्दीप्ति: क्षमाकान्तिर्भक्तश्चैव दया परा।।
शाम को स्नान कर विष्णु रूप शालग्राम शिला को पहले पंचामृत यानी दूध, दही, शहद, घी और शक्कर के मिश्रण से स्नान कराकर विशेष रूप से केसर मिले चन्दन जल से स्नान कराएं।
- स्नान के बाद भगवान शालग्राम की गंध, सफेद तिल, फूल, वस्त्र, तुलसी के पत्ते, दूर्वा, इत्र आदि लगाकर पूजा करें। नीचे लिखा भगवान विष्णु का मंत्र बोलें -
प्रणवेन च लक्ष्यो वै गायत्री च गदाधर:।
शालग्रामनिवासी च शालग्रामस्तथैव च।।
जलशायी योगशायी शेषशायी कुशेशय:।
महीभर्ता च कार्यं च कारणं पृथिवीधर:।।
- बाद भगवान शालग्राम की आरती धूप और घी के दीप जलाकर करें।
- अंत में शालग्राम को स्नान कराएं चरणामृत जरूर ग्रहण करें। इससे न केवल तीर्थजल के समान पुण्य मिलता है बल्कि सुख-समृद्धि भी आती है।
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