सनातन धर्म में हनुमानजी ऐसे भक्त के रूप में भी पूजनीय है, जिनकी भक्ति सर्वश्रेष्ठ, विलक्षण और अतुलनीय है। इससे वह भक्त शिरोमणि भी पुकारे जाते हैं। हालांकि, युग-युगान्तर से धर्मशास्त्रों में कई भक्त और उनकी ईश भक्ति के कई रूपों की अपार महिमा बताई गई है, किंतु श्रीहनुमान की रामभक्ति की एक खासियत उनको श्रेष्ठ व सर्वोपरि बनाती है। साथ ही श्रीराम-हनुमान के रिश्तों में हनुमानजी की एक खास खूबी किसी भी व्यक्ति को असाधारण व खास व्यक्तित्व का स्वामी बना सकती है। जानिए कौन-सा है राम-हनुमान संबंधों में समाया यह खास सूत्र, जो जीवन में स्थिरता, शांति व सफलता लाता है-
श्रीराम-हनुमान के बीच प्रगाढ़ता में हनुमानजी की यह खास खूबी है- शरणागति। शरणागति यानी शरण में चले जाना। हालांकि शरणागति भी अलग-अलग रूपों में देखी जाती है। कमजोरी, भय या स्वार्थ से सबल का आसरा क्षणिक लाभ दे सकता है, किंतु लंबे वक्त के लिए नकारात्मक नतीजे भी देने वाला भी होता है। किंतु यश और सफलता के लिए गुण, शक्ति संपन्न होने पर भी निर्भयता के साथ अपनाई शरणागति ही सार्थक होती है। यह शरण देने वाले और शरणागत दोनों को ही बलवान और सुखी करती है।
शक्तिधर श्रीराम और बल, बुद्धि, विद्या संपन्न श्रीहनुमान के भक्त और भगवान के गठजोड़ में भी शरणागति का ऐसा ही आदर्श छुपा है। इसका संबंध श्रीहनुमान द्वारा राम की शरणागति से है, जो व्यावहारिक जीवन में लक्ष्य पाने का एक बेहतरीन सूत्र सिखाता है।
दरअसल, शरणागति के पीछे समर्पण और निष्ठा के भाव अहम होते हैं। इससे किया गया हर काम स्वार्थसिद्धि या हित की भावना से परे होता है। यहीं नहीं, इससे कर्तव्य में अहं का भाव यानी मैं या मेरा का विचार नदारद हो जाता है। नतीजतन दोषरहित बुद्धि व विचार पूरी ऊर्जा के साथ कर्म करने में सहायक बनकर असंभव लक्ष्य को भी पाने की राह आसान कर देते हैं। श्रीहनुमान लीला इस बात का प्रमाण भी है।
बस, द्वेष-ईर्ष्या, स्वार्थ से परे, अहंकार रहित, समर्पित, सच्चा व निष्ठावान बनाने वाला शरणागति का यही एक सूत्र अगर परिवार हो या कार्यक्षेत्र, में अपने कर्तव्यों और दायित्वों को पूरा करने के लिए कर्म में उतार लें, तो जीवन से जुड़े किसी भी मकसद को जल्द पूरा करना संभव हो जाएगा। सरल शब्दों में कहें, तो श्रीहनुमान की भांति हर काम लक्ष्य पर ध्यान टिकाकर, डूबकर और मन लगाकर हो।
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