संस्कार, सोच और संगति बेहतर हो तो धन भरपूर सुख देने वाला होता है। वहीं, गलत सोच, संग, कुसंस्कार धन हानि के साथ अपयश का कारण बन जाते हैं। यही वजह है कि हिन्दू धर्मग्रंथों में भी धन को न केवल सुख बंटोरने का एक जरिया बताया गया है, बल्कि धार्मिक उपायों में भी इससे घर-परिवार और व्यक्तिगत जीवन को खुशहाल बनाकर यश और सम्मान पाने की चाहत पूरी करने के लिए सुख, ऐश्वर्य और धन की देवी महालक्ष्मी की उपासना का महत्व बताया गया है।
इस कड़ी में विष्णु भक्ति के वैशाख महीने के हर शुक्रवार को भी विष्णुपत्नी देवी लक्ष्मी की उपासना के लिए ऋग्वेद में बताए श्रीसूक्त के मंगलकारी मंत्रों का पाठ बड़ा ही शुभ माना गया है। श्रीसूक्त के मंत्रों में माता लक्ष्मी के गुण, स्वरूप, शक्तियों की अद्भुत, अचूक और बेजोड़ स्तुति है। इनका पाठ हर तरह की दरिद्रता और रोगों से मुक्ति के साथ धन-धान्य और सुखों से भर देता है।
माता लक्ष्मी की उपासना के लिए विशेष रूप से शाम के वक्त स्नान के बाद लाल कुंकुम, लाल कमल या लाल फूल चढ़ाकर धूप व घी के दीप से आरती करें। माता लक्ष्मी को अनार के फल का भोग लगाएं। बाद यहां बताए जा रहे श्रीसूक्त के 3 विशेष मंत्रों का स्मरण करें।
माता लक्ष्मी की संक्षिप्त पूजा के बाद माता लक्ष्मी के ऋग्वेद में बताए श्रीसूक्त के इन 3 मंत्रों को बोलें या जानकारी न होने पर किसी विद्वान ब्राह्मण से पूरे श्रीसूक्त का ही पाठ कराएं और सुनें। श्रीसूक्त के मंत्रों का अलग-अलग पाठ भी शुभ फल ही देता है-
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमस्तु ते।।
अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने।
अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे।।
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ।।
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