विश्वास व प्रेम का अटूट संबंध है। ये जीवन में हर रिश्ते की बुनियाद होते हैं, किंतु अक्सर कई लोग काम, क्रोध, दंभ, लोभ, मोह या ईर्ष्या जैसे स्वाभाविक दोषों के कारण अपने परिजन, मित्र या करीबी लोगों का भी भरोसा वचन, कर्म या व्यवहार से तोड़ते नजर जाते हैं। ऐसा करना आखिरकार रिश्तों में अनचाहे कलह के साथ कमजोर आत्मविश्वास का कारण भी बनता है। अस्थिर, असफल व अशांत करने वाली इन बातों से कैसे बचें, यहां जानिए-
शास्त्रों के नजरिए से चरित्र व आत्मबल ही ऐसी शक्ति हैं, जो जीवन में किसी भी मुश्किल हालात से पार पाने में मददगार होती है, क्योंकि पावन चरित्र ही किसी इंसान का आत्मविश्वास बढ़ाता है और ऊंचा मनोबल ही सौंदर्य व व्यक्तित्व को भी निखारता है।
संत शिरोमणि कबीरदासजी की बताई जीवन उपयोगी बातों में चरित्र, व्यक्तित्व, जीवन व रिश्तों को बेहतर बनाने के कई सूत्र मिलते हैं। इनमें से ही 3 खास तरीके किसी भी इंसान के लिए अपनाना आसान भी है और कारगर भी।
इनके मुताबिक आत्मबल बरकरार रखने के लिए यह भी जरूरी है कि इंसान सज्जन व दुर्जन का फर्क जान-समझकर कर्म व व्यवहार साधने की कला में माहिर बने ताकि जीवन व रिश्तों को बेहतर ढंग से साधा जा सके। अगली स्लाइड पर जानिए संत कबीरदासजी के ऐसे ही 3 सटीक सूत्र-
संत कबीरदास ने सांसारिक जीवन में विश्वासघात व दुर्जनता की पहचान के लिए बड़ा ही सरल तरीका बताया है। एक दोहे में लिखी उसी बात से जानिए कि कैसे इंसान के मन की थाह ली जा सकती है-
बानी से पह्चानिये, साम चोर की घात।
अन्दर की करनी से सब, निकले मुंह कई बात॥
मतलब सीधा है कि जीवन में छल-कपट, विश्वासघात को पहचानने का सबसे बेहतर जरिया है- बोल यानी वाणी, क्योंकि ऐसे इंसान के मन में जो भी बुरे विचार चलते हैं या फिर कोई भी बुरी मंशा होती है, वे किसी न किसी रूप में शब्दों के साथ बाहर प्रकट हो जाते हैं।
सबक यही है कि हर इंसान मन, विचार व कर्म को साफ रखे। अन्यथा क्षणभर के लिए भी आया कोई कुविचार या किया गया कोई काम जाने-अनजाने मुंह से शब्दों के जरिए उजागर होने पर रिश्ते टूटने या जीवन के लिए भारी नुकसान का कारण बन सकता है।
क्रोध यानी गुस्सा जीवन के लिए बाधक बताया गया है, क्योंकि क्रोध करने पर बोल ही नहीं, व्यवहार और चरित्र में भी दोष पैदा होते हैं, जो जीवन को बड़ी हानि पहुंचाते हैं। इंसान जीवन में तमाम सुख-सुविधाओं को बंटोर लें, किंतु स्वभाव की यह खामी दूर न करे तो उससे मिले कलह और अशांत महौल से जीवन कभी भी सुकून से नहीं गुजरेगा।
संत कबीरदास ने गुस्से और अहंकार को काबू में करने व सुख-शांति पाने का बेहद सरल सूत्र प्रकट किया है। कहा है कि-
जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होइ।
या आपा को डारिदे, दया करै सब कोइ॥
सरल शब्दों में भाव यही है कि अगर मन शीतल यानी संयमित और पवित्र रहे, प्रेम व क्षमा भाव से भी भरा रहे तो वह क्रोध व अहंकार जैसे बुरे भावों से भी अछूता रहेगा। नतीजतन बदले में दूसरों से मिलने वाला स्नेह, दया और सहयोग भी जीवन को सुखी और सफल बनाएगा।
कबीर का दर्शन यही है कि अगर सुख-सफलता की चाहत है तो क्रोध व अहं पर नियंत्रण रखें। क्रोध पर काबू करने से मिला दूसरों का प्रेम, सहयोग और स्वयं का आत्मविश्वास जीवन को कलह और चिंतामुक्त बना देगा।
संत कबीर ने इंसान को दु:खों से दूर रहने के लिए व्यावहारिक जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी बातों पर गौर करने की सीख दी, जो सफलता या असफलता दोनों ही हालात में हर इंसान की ताकत और खुशियों का कारण बनती है।
इंसान की सफलता और सुख का वह सूत्र है- मीठी वाणी या बोल। जी हां, शब्द और बोल में कटुता जहां भारी दु:खों का कारण बनते हैं, वहीं मीठे और विनम्रता भरे बोल इंसान को गहरी मुसीबतों से बाहर निकाल सकते हैं।
सफल जीवन के लिए वाणी की अहमियत बताते हुए संत कबीर ने कहा कि-
ऐसी बाणी बोलिये, मन का आपा खोइ ।
अपना तन सीतल करै, औरन को सुख होइ ॥
अर्थ यही है कि मीठे बोल अपार सुख का कारण बनते हैं। इसलिए वाणी में पहले कोमलता लाने की कोशिश करें। शब्द और आवाज से कर्कशता या कड़े शब्दों को निकालें। मीठी वाणी और मन के संतुलन और अभ्यास से हर इंसान अच्छी-बुरी स्थितियों में भी दूसरों को अपना बनाकर सहयोग, प्रेम और विश्वास पाता है, जो कामयाबी की राह बेहद आसान बना देते हैं। सरल शब्दों में कहें तो मीठे शब्दों के जादू से बना दमदार व आकर्षक व्यक्तित्व व चरित्र सभी का प्रिय बना देता है।
वैसे, धार्मिक दृष्टि से भी वाणी में देवी सरस्वती का वास माना गया है, इसलिए मीठे वचन मां सरस्वती की भी उपासना है।
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