पति-पत्नी एक गाड़ी के दो पहिए माने जाते हैं। गृहस्थी रूपी गाड़ी इन दोनों के समान सहयोग से ही आगे बढ़ती है। हिंदू धर्म ग्रंथों में पत्नी को पति की अद्र्धांग्नी कहा गया है, जिसका अर्थ है पत्नी अपने पति के शरीर का आधा हिस्सा होती है। स्वयं भगवान शिव ने अद्र्धनारीश्वर स्वरूप में पत्नी के इस रूप को साकार किया है। हमारे पुराणों में पत्नी धर्म के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है, पत्नी के लिए एक मर्यादा बनाई गई है।
शिवमहापुराण की रुद्रसंहिता में शिव-पार्वती के विवाह प्रसंग में पतिव्रता स्त्री के लिए कई जरूरी नियम बताए हैं। ये नियम पार्वती को एक पतिव्रता ब्राह्मण पत्नी ने विदाई के समय बताए थे। व्यवहारिक दृष्टि से वर्तमान समय में इन नियमों का अनुसरण करना बहुत ही कठिन है। शिवमहापुराण के अनुसार पतिव्रता स्त्री को अपने पति के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए और किन नियमों का पालन करना चाहिए, आज हम आपको यही बता रहे हैं-
1- शिवमहापुराण के अनुसार धर्म में तत्पर रहने वाली स्त्री अपने प्रिय पति के भोजन कर लेने पर ही भोजन करना चाहिए। जब पति खड़ा हो तो पत्नी को भी खड़ा रहना चाहिए। उसकी आज्ञा के बिना बैठना नहीं चाहिए। पति के सोने के बाद सोना चाहिए और जागने से पहले जाग जाना चाहिए।
2- पत्नी को बिना श्रृंगार किए अपने पति के सामने नहीं जाना चाहिए। जब पति किसी कार्य से परदेश गया हो तो उस समय श्रृंगार नहीं करना चाहिए। पतिव्रता स्त्री को कभी अपने पति का नाम नहीं लेना चाहिए। पति के भला-बुरा कहने पर भी चुप ही रहना चाहिए।
3- पति के बुलाने पर तुरंत उसके पास जाना चाहिए और पति जो आदेश दे, उसका प्रसन्नतापूर्वक पालन करना चाहिए। पतिव्रता स्त्री को घर के दरवाजे पर अधिक देर तक नहीं खड़ा रहना चाहिए।
4- शिवमहापुराण के अनुसार पतिव्रता स्त्री को अपने पति की आज्ञा के बिना कहीं नहीं जाना चाहिए। पति के बिना मेले, उत्सव आदि का भी त्याग करना चाहिए। पति की आज्ञा के बिना व्रत-उपवास भी नहीं करना चाहिए।
5- पतिव्रता स्त्री को प्रसन्नतापूर्वक घर के सभी कार्य करना चाहिए। अधिक खर्च किए बिना ही परिवार का पालन-पोषण ठीक से करना चाहिए। देवता, पितर, अतिथि, सेवक, गौ व भिक्षुक के लिए अन्न का भाग दिए बिना स्वयं भोजन नहीं करना चाहिए।
6- शिवमहापुराण के अनुसार पति बूढ़ा या रोगी हो गया हो तो भी पतिव्रता स्त्री को अपने पति का साथ नहीं छोडऩा चाहिए। जीवन के हर सुख-दु:ख में पति की आज्ञा का पालन करना चाहिए। अपने पति की गुप्त बात किसी को नहीं बताना चाहिए।
7- रजस्वला होने पर पत्नी को तीन दिन तक अपने पति को मुंह नहीं दिखाना चाहिए अर्थात उससे अलग रहना चाहिए। जब तक वह स्नान करके शुद्ध न हो जाए तब तक अपनी कोई बात भी पति के कान में नहीं पडऩे देना चाहिए।
8- रजोनिवृत्ति के बाद शुद्धतापूर्वक स्नान करके सबसे पहले अपने पति का चेहरा देखना चाहिए, अन्य किसी का नहीं। अगर पति न हो तो भगवान सूर्य देव के दर्शन करना चाहिए।
9- पतिव्रता स्त्रियों को कुलटा स्त्रियों के साथ बात नहीं करनी चाहिए। पति से द्वेष रखने वाली स्त्री का कभी आदर नहीं करना चाहिए। कभी अकेले नहीं खड़ा रहना चाहिए।
10-
मैथुनकाल के अलावा किसी अन्य समय पति के सामने धृष्टता नहीं करना चाहिए। पतिव्रता स्त्री को ऐसा काम करना चाहिए, जिससे पति का मन प्रसन्न रहे। ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे कि पति के मन में विषाद उत्पन्न हो।
11-
पति की आयु बढऩे की अभिलाषा रखने वाली स्त्री को हल्दी, रोली, सिंदूर, काजल, मांगलिक आभूषण, केशों को संवारना, हाथ-कान के आभूषण, इन सबको अपने से दूर नहीं करना चाहिए यानी पति की प्रसन्नता के लिए सज-संवरकर रहना चाहिए।
12-
पतिव्रता स्त्री को सुख और दु:ख दोनों ही स्थिति में अपने पति की आज्ञा का पालन करना चाहिए। यदि घर में किसी वस्तु की आवश्यकता आ पड़े तो अचानक ये बात नहीं कहनी चाहिए बल्कि पहले अपने मुधर वचनों से उसे पति को प्रसन्न करना चाहिए उसके बाद ही उस वस्तु के बारे में बताना चाहिए।
13-
जो स्त्री अपने पति बाहर से आते देख अन्न, जल आदि से उसकी सेवा करती है, मीठे वचन बोलती है, वह तीनों लोकों को संतुष्ट कर देती है। पतिव्रता स्त्री के पुण्य पिता, माता और पति के कुलों की तीन-तीन पीढिय़ों के लोग स्वर्गलोक में सुख भोगते हैं।
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