धन व कई रूपों में स्त्री किसी भी पुरूष की ज़िंदगी का अटूट व अहम हिस्सा होते हैं। स्त्री मात्र पत्नी के रूप में ही नहीं, बल्कि मां, बहन और पुत्री के अलावा अन्य रिश्तों के रूप में भी पुरूष की जिंदगी को बेहतर, सफल व सार्थक बनाने में योगदान देती है। इसी तरह धन भी स्त्री हो या पुरूष व्यक्तिगत रूप से सुख और सुविधा के साथ ही सामाजिक रूप से मान-सम्मान देने वाला होता है।
शास्त्रों के मुताबिक भी अर्थ (धन, संपत्ति, स्त्री) के बिना अन्य पुरुषार्थों (धर्म, काम व मोक्ष) को पाने का लक्ष्य भी मुश्किल हो जाता है। यही वजह है कि पुराणों में सांसारिक पुरुष, खासकर गृहस्थ के लिए स्त्री और धन की रक्षा के तीन सटीक और व्यावहारिक उपाय बताए गए हैं। इन्हें आधुनिक दौर के मुताबिक जरूरी बदलाव के साथ अपनाकर स्त्री का सम्मान व धन-सम्पत्ति की रक्षा करना संभव बनाया जा सकता है।
हिन्दू धर्मशास्त्र कहते हैं कि स्त्री और धन इन तीन के साये में हमेशा सुरक्षित रहते हैं- पुरूष, स्थान और घर।
पुरूष- अच्छे कुल, बुद्धिमान, सच बोलनेवाला, विनम्र, धर्म में विश्वास रखने वाला, बुलंद हौंसले वाले पुरूष की पनाह और संग में स्त्री और धन सुरक्षित रहता है।
स्थान- नगर के द्वार, चौक, यज्ञशाला, कारीगरों के रहने के स्थान, जुआ घर और मांस की दुकान, झूठे, पाखण्डी, राजा के नौकर के स्थान, मन्दिर के रास्ते में, राजमार्ग, राजा के महल से दूर ऐसे नगर में रहने का स्थान चुनना चाहिए, जहां सज्जन लोग निवास करताे हैं। इससे स्त्री और धन के नाश का भय नहीं रहता।
घर- शास्त्रों के मुताबिक स्त्री और धन की सुरक्षा के लिए घर के स्थान चुनने और निर्माण में भी खास सावधानी बरतना चाहिए। घर हमेशा साफ जगह, मुख्य सड़क पर, अच्छे स्वभाव और व्यवहार वाले लोगों के रहने के स्थान पर घर बनाना चाहिए। घर की जमीन का ढलान पूर्व या उत्तर दिशा में रखें। रसोईघर, स्नानकक्ष, गोशाला, शयनकक्ष और पूजाघर सभी अलग-अलग बनाए जाएं।
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