हिन्दू धर्मग्रंथों के मुताबिक जीवन को अनुशासित रखने के लिए मन, वचन व कर्म में संयम जरूरी भी है और कारगर भी है। दरअसल, प्रेम के मूल में भी दूसरों के प्रति संयम बरतना ही होता है, आशाएं जीवित रखना भी धैर्य के बिना संभव नहीं। वहीं, भगवान के लिए आस्था बनाए रखने में संयम ही अहम होता है।
इसी कड़ी में इंद्रिय संयम खास तौर पर कर्मेन्दियों (हाथ, पैर, गुप्त अंग) में पैरों से जुड़े नियम-संयम भी सुखी, स्वस्थ, सफल, यशस्वी व भाग्यशाली बनने के लिए मंगलकारी माने गए हैं। इसी कड़ी में सवेरे जागने पर पैरों को जमीन पर रखते वक्त यानी भूमि को स्पर्श करने से पहले 1 खास उपाय करना न केवल कर्म दोष व अड़चने दूर करने वाला, बल्कि भाग्य बाधा भी खत्म करने वाला माना गया है।
असल में, सनातन धर्म जड़ यानी गतिहीन या निष्प्राण में भी चेतना यानी गति या प्राण को खोजने का विलक्षण ज्ञान व शक्ति देता है। यही वजह है कि चाहे शिवलिंग हो या शालिग्राम शिला यानी हरि हो या हर, के निराकार रूप भी सांसारिक जीवन को सुख-समृद्ध बनाने वाले माने गए हैं।
शास्त्रों के मुताबिक मां के रूप में वंदनीय होने से भूमि पर पैर रखना भी दोष का कारण माना गया है। चूंकि हर मानव भूमि स्पर्श से अछूता नहीं रह सकता, इसलिए शास्त्रों में भी भूमि स्पर्श दोष के शमन व मर्यादा पालन के लिए भूमि को जगतपालक विष्णु की अर्द्धांगिनी मानकर उनसे एक विशेष मंत्र से क्षमा प्रार्थना जरूरी मानी गई है।
व्यावहारिक नजरिए से इसमें हर इंसान को अहंकार से परे रहकर जीने का छुपा संदेश है यानी विनम्र सरल शब्दों में जमीन से जुड़े रहकर ही असफलता व दु:ख की ठोकरों से बचना संभव है।
जानिए यह विशेष भूमि स्पर्श मंत्र, जिसे सफल, खुशहाल व खुशकिस्मत रहने की चाहत रखने वाले हर व्यक्ति को सुबह जागने के बाद जमीन पर दोनों पैर रखते हुए जरूर स्मरण करना चाहिए-
जानिए यह विशेष भूमि स्पर्श मंत्र, जिसे सफल, खुशहाल व खुशकिस्मत रहने की चाहत रखने वाले हर व्यक्ति को सुबह जागने के बाद जमीन पर दोनों पैर रखते हुए जरूर स्मरण करना चाहिए-
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तन मंडिते।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व में।।
सरल शब्दों में इस मंत्र का अर्थ है कि समुद्र रूपी वस्त्र पहनने वाली पर्वत रूपी स्तनों से मंडित भगवान विष्णु की पत्नी, हे माता पृथ्वी, आप मुझे पाद स्पर्श के लिए क्षमा करें।
Bahut achi jankari hai Bhai. Apke sab article padhne ki kosish kr rha hu.Dhanyawad
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