किसी इंसान का सफलता के शिखर पर पहुंचना दो रास्तों से गुजरकर ही संभव हो पाता है। पहला- अनुभव और दूसरा ज्ञान। कामयाबी के लिए दोनों ही रास्ते बेहतर हैं। इनमें से पहले रास्ते से हर व्यक्ति को गुजरना ही पड़ता है, लेकिन जो व्यक्ति जल्द से जल्द सफलता की चाहत रखता है, उसके लिए दूसरा रास्ता अपनाना भी अहम हो जाता है, चूंकिज्ञान और अनुभव के जरिए सपनों को जल्दी पूरा करना आसान होता है, इसलिए यहां धर्मशास्त्रों के नजरिए से जानिए कि सफलता व तरक्की के लिए कौन-सा रास्ता किस तरह बेहतर साबित हो सकता है-
अनुभव के रास्ते तरक्की की बात करें तो व्यावहारिक जीवन में मिले अच्छे बुरे अनुभव किसी व्यक्ति को जानकार और हुनरमंद बनाते हैं। इस रास्ते व्यक्ति शरीर, विचार और व्यवहार के जरिए की गई गलतियों से सीख और अनुभव लेकर बेहतर बन सकता है। ऐसा होने में समय तो ज्यादा लग सकता है, किंतु आखिरकार अनुभव, बेहतर व सटीक नतीजे पाने के लिए कारगर ही साबित होता है।
सफलता व तरक्की के लिए दूसरा रास्ता यानी ज्ञान बटोरना, न केवल व्यक्ति को हर तरह की गलतियों से दूर रखता है, बल्कि शरीर, मन, विचार और व्यवहार से भी श्रेष्ठ बनाकर तुरंत और लगातार कामयाबी देता है।
धर्म के नजरिए से ज्ञान पाने या सीखने की बात हो तो 'स्वाध्याय' सबसे बेहतर उपाय माना गया है। स्वाध्याय शब्द के भी दो अर्थ निकलते हैं- पहला स्वयं का अध्ययन यानी खुद के गुण-दोष को जानकर दूर करना। वहीं, दूसरा मतलब है स्वयं ही अध्ययन करना। इसमें स्वयं किताबों, ग्रंथ की शिक्षाओं को पढ़कर या विद्वान और सिद्ध लोगों के अनुभव या सोच को जानकर व्यावहारिक जीवन में अपनाया जाता है।
हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता में इसी उद्देश्य से स्वाध्याय को वाणी का तप बताकर लिखा गया है कि-
स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते।
निचोड़ यही है कि स्वाध्याय का रास्ता इसीलिए बेहतर है कि इससे व्यक्ति व्यावहारिक जीवन में आने वाली परेशानियों से बाहर आने का तरीका, सही निर्णय लेने की सीख या विद्वान लोगों के अनुभव पुस्तकों के अध्ययन के जरिए जान लेता है। इनको ही व्यावहारिक जीवन में अपनाकर बिना किसी भूल के आगे बढ़ा जा सकता है।
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