ईश्वर में विश्वास करने वाले अक्सर देव पूजा के लिए देवालय जाते हैं, जहां वे देव उपासना के लिए मंत्र स्मरण या देव स्तुति भी करते हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जो ईश्वर में विश्वास नहीं करते, जिनको नास्तिक भी पुकारा जाता है। हालांकि, सनातन धर्म में वेद विरोधियों को भी नास्तिक कहा गया है। वहीं, ईश्वर में विश्वास करने वाले कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो सांसारिक जीवन से जुड़े कई कार्यों की व्यस्तता के चलते देव आराधना का समय ही निकाल नहीं पाते।
तमाम पुरुषार्थ के बाद भी जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव के दौरान ईश्वर उपासना से वंचित रहने वाले ऐसे लोगों का मन-मस्तिष्क कई मौकों पर इन सवालों से भी घिर जाता है कि आखिर सुखी जीवन के लिए क्या करें और क्या न करें। ऐसी ऊहापोह की स्थिति से बचकर सुख-सफलता भरी ज़िंदगी गुजारने के लिए ही यहां बताया जा रहा है, गीता एक ऐसा सूत्र, जो व्यावहारिक तौर से सिखाता है कि अगर कोई देव उपासना के लिये कोई मंत्र न बोलें या मंदिर न भी जा पाए, फिर भी क्या करते हुए देव पूजा का फल और सारे सुख-सौभाग्य आसानी से बटोर सकता है-
श्रीमद्भगद्गीता में उजागर है है कि-
“स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानव:”
जिसका सरल शब्दों में अर्थ है यही है कि स्वाभाविक कामों के रूप में भगवान की उपासना करते हुए कोई भी मनुष्य सिद्ध बन सकता है।
इस सूत्र का निचोड़ यही है कि व्यावहारिक जीवन में अहं या मोह के कारण इंसान कई गलतियां करते हुए गलत बातों और व्यवहार के कारण दोष का भागी ही नहीं बनता, बल्कि अच्छे संग और देव स्मरण से भी दूर होता है। इसलिए इंसान सुख पाने के लिए अगर देव स्मरण न भी करें, पर अहंकार और मोह को छोड़कर अपने कर्तव्यों को पूरा करता चले, तो यह भी भगवान की पूजा ही मानी गई है। दरअसल, जीवन में अपने दायित्वों को पूरा करना ही सफलता, तरक्की और प्रतिष्ठा देने वाला साबित होता है।
इस सूत्र में सुखों की चाहत रखने वाले इंसान के कई सवालों का एक जवाब यही मिलता है कि अपने स्वाभाविक कर्मों को ही पूजा मानकर चलने वाले व्यक्ति पर भगवान भी मेहरबान रहते हैं, और भाग्य भी, जिससे आखिरकार किसी इंसान की मनचाहे यशस्वी, सुखी व सफल जीवन की राह आसान हो जाती है।
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